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________________ सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव * 157 को समझना या समझाना उपेदश स्वाध्याय है। पञ्चांग विधि द्वारा विषय की व्याख्या एवं उसे समझने का पूर्ण प्रयास किया जाता है। जिस प्रकार समुद्र की गहराई शनैःशनैः बढ़ती जाती है, उसी प्रकार पञ्चांग विधि द्वारा शिक्षा का उत्तरोत्तर विस्तार होता जाता है। शास्त्रों का पाठ उसकी व्याख्या और भाष्यों को हृदयंगम करना इस पाठ शैली के अन्तर्गत है। अध्ययनीय विषय या पाठ्य ग्रन्थ : शिक्षा के लिए उसके अध्ययनीय विषयों को जानना परम आवश्यक है। शिक्षा के विषयों का विभाजन विद्यार्थीयों के बौद्धिक विकास पर अवलम्बित था। पाँच वर्ष के बालक-बालिकाओं को लिपिज्ञान, अंक विद्या एवं सामान्य भाषा विज्ञान कराया जाता है। आठ वर्ष की आयु तक बालक घर पर ही रहकर पढ़ना-लिखना और हिसाब बनाना सीखता है। यह एक प्रकार से प्राथमिक शिक्षा थी। इतनी शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य थी। आठ वर्ष की आयु के पश्चात् शास्त्रीय शिक्षा प्रारम्भ होती थी, यह सम्भ्रान्त परिवारों के व्यक्तियों को ही दी जाती थी। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अपने पुत्र एवं पुत्रियों को जो शिक्षा प्रदान की है, उसमें शिक्षा के पाठ्य विषयों पर बहुत ही सुन्दर प्रकाश पड़ता है। उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को अर्थशास्त्र, संग्रह प्रकरण और नृत्यशास्त्र की शिक्षा दी थी। वृषभसेन को गान्धर्वविद्या की शिक्षा, अनन्तविषय को चित्रकला, वास्तुकला और आयुर्वेद की शिक्षा तथा बाहुबली को कामनीति, स्त्री पुरुष लक्षण, आयुर्वेद, धनुर्वेद, अश्वलक्षण, गजलक्षण, रत्नपरीक्षण एवं मन्त्र-तन्त्र की शिक्षा दी गयी थी। अध्ययनीय वाङ्मय के अन्तर्गत व्याकरण शास्त्र, छन्द शास्त्र और अलंकार शास्त्र का ग्रहण किया गया था। नवयुवकों को उक्त तीनों विषयों के अतिरिक्त ज्योतिष, आयुर्वेद, शस्त्र संचालन, अश्व, गज आदि के संचालन की शिक्षा दी जाती थी। आदि पुराण में 14 विद्याएँ पाठ्यक्रम के अन्तर्गत बतायी गयी है, जो निम्नलिखित हैं - 1-4. चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद का अध्ययन । 5. शिक्षा - उच्चारणविधि का परिज्ञान। कल्प। 7. व्याकरण - नाम, आख्यात, निपात और अव्यय शब्दों का परिज्ञान । 8. छन्द। 9. ज्योतिष - ग्रह, नक्षत्र, ग्रहों की गति, स्थिति एवं अवस्थाओं की जानकारी। 10. नियुक्त - शब्दों की व्युत्पत्तियाँ। 11. इतिहास - पुरावृत का परिज्ञान।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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