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________________ सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव * 155 शिक्षा विधि : प्राचीन काल में ही जैन दर्शन द्वारा कई प्रकार की शिक्षाविधियों का प्रतिपादन किया गया है, जो निम्नलिखित है - 1. पाठ विधि 2. प्रश्नोत्तर विधि 3. शास्त्रार्थ विधि 4. उपदेश विधि 5. नय विधि 6. उपक्रम या उपोद्घात विधि 7. पंचांग विधि। पाठ विधि : गुरु या शिक्षक शिष्यों को पाठ-विधि द्वारा अंक और अक्षर ज्ञान की शिक्षा देता है। वह किसी काष्ठ पट्टिका पर अंक या अक्षर देता है। शिष्य उन अक्षर या अंकों का अनुकरण करता है। बार-बार उन्हें लिखकर कण्ठस्थ करता है। इस विधि का प्रारम्भ आदितीर्थंकर ऋषभदेव ने किया। उन्होंने अपनी कन्याओं को इस पाठ-विधि द्वारा ही शिक्षा दी थी। यह शिक्षा विधि सामान्य बुद्धि वाले अल्पवयस्क विद्यार्थीयों के लिए उपयोगी है। इसमें अभ्यास का भाव भी अन्तर्निहित है। इस विधि में मूलतः तीन शिक्षा तत्त्व पाये जाते हैं। 1. उच्चारण की स्पष्टता : शिक्षा ग्रन्थों में अक्षरों व शब्दों के लिए जिस उच्चारण विधि का निरुपण आता है, इस विधि के अनुसार वर्णों का उच्चारण शिष्यों को सिखाया जाता है। 2. लेखन कला का अभ्यास हो जाता है। 3. तर्कात्मक संख्या प्रणाली : वस्तुओं के गिनने के रूप में अंकविद्या का प्रारम्भ हुआ। इस तीसरी पाठ शैली द्वारा परिकर्माष्टक - योग, गुणा, घटाव, भाग, वर्गमूल, वर्ग, धन, धनमूल इन आठ क्रियाओं का परिज्ञान कराया जाता है। प्रश्नोत्तर विधि : शिक्षा शास्त्र की दृष्टि से यह प्रौढ़ शैली है। इसका प्रयोग वयस्क एवं प्रतिभाशाली छात्रों के लिए ही किया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत शिष्य गुरु से प्रश्न पूछता है तथा गुरु चमत्कार पूर्ण उत्तर देकर शिष्य को संतुष्ट करते हैं। इस प्रणाली द्वारा विषयों को हृदयंगम करने में विशेष सुविधा होती है। गूढ और दुरुह विषय भी सरलतापूर्वक समझ में आ जाते हैं। प्रश्नोत्तर दोनों ही ओर से किए जाते हैं। शिष्य भी प्रश्न करता है गुरु से। शिष्य द्वारा दिए गए उत्तर से यह ज्ञात होता है, कि वह गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को किस सीमा तक एवं किस रूप में ग्रहण कर पाता है। गुरु प्रश्नों का तर्कपूर्ण उत्तर देकर शास्त्रीय ज्ञान का संवर्द्धन करता है। इस विधि से व्यक्ति का बौद्धिक विकास भी होता है। जैसे-महावीर उत्तरदाता गुरु तथा गौतमस्वामी प्रश्नकर्ता शिष्य थे। इसी प्रकार ऋषभदेव उत्तरदाता गुरु एवं उनके भरतादि पुत्र प्रश्नकर्ता शिष्य थे।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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