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________________ सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव * 151 शिक्षा का लक्ष्य आन्तरिक दैवी शक्तियों की अभिव्यक्ति करना है, अन्तर्निहित श्रेष्ठतम् उदात्त महनीय गुणों का विकास करना है तथा शरीर, मन और आत्मा को सबल बनाना है। त्याग, संयम, आचार-विचार और कर्तव्यनिष्ठा का बोध भी शिक्षा द्वारा प्राप्त होता है। सतत् स्वाध्याय से ही व्यक्ति की अन्तर्निहित शक्तियाँ प्रादुर्भूत हो जाती है, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शुचिता, बौद्धिक प्रखरता, आध्यात्मिक दृष्टि, नैतिकबल, कर्मठता एवं सहिष्णुता की प्राप्ति शिक्षा तथा स्वाध्याय द्वारा ही सम्भव है। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अपनी कन्याओं और पुत्रों को जो शिक्षा दी है, उससे शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य प्रतिपादित होते हैं - 1. आत्मोत्थान के लिए प्रयत्नशीलता। 2. जगत् और जीवन के सम्बन्धों का परिज्ञान। 3. आचार, दर्शन और विज्ञान के त्रिभुज की उपलब्धि। 4. प्रसुप्त शक्तियों का उद्बोधन। 5. सहिष्णुता की प्राप्ति। 6. कलात्मक जीवनयापन करने की प्रेरणा की प्राप्ति। " 7. अनेकान्तात्मक दृष्टिकोण द्वारा भावात्मक अहिंसा की प्राप्ति । 8. व्यक्तित्व के विकास के लिए समुचित अवसरों की प्राप्ति। 9. कर्तव्यपालन के प्रति जागरुकता का बोध । 10. शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का उन्नयन। 11. विवेक दृष्टि की प्राप्ति। शिक्षा प्राप्त करने की आयु और तत्सम्बन्धी संस्कार : विद्यारम्भ के समय जिन संस्कारों का विधान किया गया है, उन्हें श्रावकों की क्रिया भी कहा गया है। ये संस्कार निम्नलिखित है - 1. लिपि संस्कार। 2. उपनीति संस्कार। 3. व्रत चर्या। 4. दीक्षान्त या समवर्तन संस्कार - व्रतावरण। 1. लिपि संस्कार : जब बालक पाँच वर्ष का हो जाये, तब उसका विधिवत् अक्षरारम्भ करना चाहिये। इसे लिपि संस्कार कहते है। जैन दर्शन में लिपि संस्कार की विधि के बारे में बताया गया है, कि बालक के पिता को अपने वैभव के अनुरूप पूजन सामग्री लेकर श्रुत देवता का पूजन करना चाहिये। भगवान ऋषभदेव ने स्वयं अपनी पुत्रियों के लिपि संस्कार के समय सुवर्ण पट्ट पर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ आदि वर्णमाला लिखी थी और श्रुतदेवता की स्थापना की थी। वर्णमाला लेखन एवं श्रुत पूजन के पश्चात् आचार्य बालक को आशीर्वाद देते
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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