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________________ सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव सामाजिक विकास में जैन दर्शन का योगदान जैन दर्शन की मनुष्य के व्यक्तित्व एवं समाज निर्माण की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। व्यक्ति की वैयक्तिक स्थिति समाज के बिना सम्भव नहीं है। व्यक्ति की वैयक्तिकता का अर्थ इतना ही है, कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आचरण और क्रिया व्यापारों को परिष्कृत करें। समाज पारिवारिक जीवन से प्रारम्भ होता है। भोग-भूमि के जीवन में भी अनुभूति वैयक्तिक होते हुए भी उसका विकास युगल के मध्य ही होता है। संस्कृति और सामाजिकता का विकास इसी युगल परिवार से होता है। भोग-भूमि की समाप्ति के पश्चात् कर्म-भूमि के साथ ही सामाजिक जीवन का प्रारम्भ हुआ। यह सर्वमान्य तथ्य है, कि कर्मभूमि में अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता है। लोक जीवन का प्रतिपादन करने से सामाजिक जीवन का ढाँचा तो निर्मित होता ही है, साथ ही व्यापक प्रसार का भी अवसर मिलता है। सामाजिक चेतना के अभाव में कर्म का मार्ग संकीर्ण हो जाता है। आजीविका, विवाह, व्यापार-व्यवसाय आदि के लिए सामाजिक सहयोग की नितान्त आवश्यकता है। कोई भी धर्म-दर्शन आध्यात्मिक चेतना के बल से लोकप्रिय नहीं बन सकता है, अतः सामाजिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति सामाजिक संस्थाओं के बिना संभव नहीं है। आदिपुराण में निम्नलिखित संस्थाओं का वर्णन किया गया है 1. कुलकर संस्था, 2. समवशरण संस्था, 3. चतुर्विधसंघ-संस्था, 4. वर्णजाति संस्था, 5. आश्रम संस्था, 6. विवाह संस्था, 7. कुल संस्था, 8. संस्कार संस्था, 9. परिवार संस्था, 10. पुरुषार्थ संस्था, 11. चैत्यालय संस्था। __ 1. कुलकर संस्था : कुलकर संस्था एक प्रकार की समाज व्यवस्था को सम्पादित करने वाली संस्था है। भोग और त्याग का सम्पृक्त जीवन किस प्रकार निर्धान्त व्यतीत किया जाता है, इसका सम्यक् परिज्ञान कुलकरों द्वारा प्रतिपादित किया गया है। कुलकरों ने जीवन मूल्यों को नियमबद्ध कर एकता और नियमितता प्रदान करके मनुष्य के नैतिक कर्मों का निर्देशन किया। अपराध या भूलों का परिमार्जन दण्डव्यवस्था के बिना संभव नहीं है, अतः कार्यों और क्रियाव्यापारों को नियन्त्रित करने के लिए अनुशासन की स्थापना की जाती है। इस कुलकर संस्था का विकसित रूप ही राज्य संस्था है, जिसमें समाज और राजनीति दोनों के तत्त्व विद्यमान है।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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