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________________ जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता धर्म और दर्शन मनुष्य जीवन के दो अभिन्न अंग हैं। जब मानव चिन्तन के सागर में गहराई से डुबकी लगाता है, तब दर्शन का जन्म होता है तथा जब वह उस चिन्तन का जीवन में प्रयोग करता है, तब धर्म की अवतारणा होती है। मानव मन की उलझन को सुलझाने के लिए ही धर्म और दर्शन अनिवार्य साधन हैं। धर्म और दर्शन परस्पर सापेक्ष हैं, एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का विषय सम्पूर्ण विश्व है। दर्शन मानव की अनुभूतियों की तर्कपूर्ण व्याख्या करके सम्पूर्ण विश्व के आधारभूत सिद्धान्तों की अन्वेषणा करता है। धर्म आध्यात्मिक मूल्यों के द्वारा सम्पूर्ण विश्व का विवेचन करने का प्रयास करता है। दोनों ही मानवीय ज्ञान की योग्यता में, यथार्थता में तथा चरम तत्त्व में विश्वास करते हैं। दर्शन सिद्धान्त को प्रधानता देता है, तो धर्म व्यवहार को। दर्शन बौद्धिक आभास है, धर्म आध्यात्मिक विकास है। मानव जीवन को सुन्दर, सरस एवं मधुर बनाने के लिए दोनों ही तत्त्वों की जीवन में अत्यन्त आवश्यकता है। विश्व के धर्म, दर्शन, संस्कृति, देश, समाज अथवा जाति के प्राचीन से प्राचीनतम अतीत के परोक्ष स्वरूप को प्रत्यक्ष की भाँति देखने का दर्पण तुल्य एकमात्र वैज्ञानिक साधन इतिहास है। किसी भी देश, समाज, जाति, धर्म, दर्शन तथा संस्कृति के अभ्युदय, पतन, पुनरुत्थान, आध्यात्मिक उत्कर्ष एवं अपकर्ष में निमित्त बनने वाले लोक-नायकों के जीवनवृत्त आदि के क्रमबद्ध संकलन, आलेखन का नाम ही इतिहास है। इतिहास मानवता के लिए, भावी पीढ़ियों के लिए दिव्य प्रकाश स्तम्भ के समान दिशाबोधक मार्गदर्शक माना गया है, अतः किसी भी धर्म, समाज, संस्कृति अथवा जाति की सर्वतोमुखी उन्नति के लिए प्रेरणा के प्रमुख स्रोत उसके सर्वांगीण शृंखलाबद्ध इतिहास का होना अनिवार्य रूप से परमावश्यक है। मानव संस्कृति के अभ्युदय के लिए धर्म-दर्शन का इतिहास जानना आवश्यक है। यह एक सामान ज्ञासा होती है, कि धर्म दर्शन का आरंभ कब हुआ? उसका प्रारंभिक स्वरूप क्या रहा है? वर्तमान काल में विद्यमान विविध धर्म व दर्शनों के मध्य क्या वह आज भी अस्तित्वमान है? इन्हीं स्वाभाविक जिज्ञासाओं के समाधान स्वरूप हम एक ऐसे धर्म, दर्शन व संस्कृति को जानने का प्रयास करेंगे, जो वास्तव में मानव सभ्यता व संस्कृति का प्रथम पुरस्कर्ता कहा जा सके। वो है, जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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