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116 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
158. वही, गा० 191
159. कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पृ० 498 160. आवश्यक चूर्णि, पृ० 155 161. · आवश्यक चूर्णि, पृ० 156 पूर्व भाग 162. आवश्यक निर्युक्ति, गा० 213-14 163. कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, सू० 211 164. आवश्यक निर्युक्ति, गा० 212
165. वही, गा० 213
166. विशेषावश्यक भाष्य, गा० 464 की टीका
167. समवायांग सूत्र, समवाय 72
168. (i) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वक्षस्कार 2, टीका पत्र 139-2, (ii) कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, 140-1
169. आदिपुराण, पर्व 16, श्लोक 243 से 246
170. आवश्यक चूर्णि, पृ० 213-14
171. तिलोयपण्णत्ति - यतिवृषभसेन, गा。 586 172. वही, गा० 597
173. समवायांग, 500 सू० 3
174. (i) आवश्यक निर्युक्ति, गा० 239 व 242 (ii) कल्पसूत्र, सू० 195
175. महापुराण - पुष्पदन्त, पर्व 18, लोक 1.
176. (i) हरिवंशपुराण- जिनसेन, सर्ग 6, श्लोक 183-190 (ii) आवश्यक निर्युक्ति, गा० 345
(iii) त्रिशष्टि शलाका चरित्र - आचार्य हेमचन्द्र, 1/3/301-302
177. (i) कल्पसूत्र, सू० 196
(ii) आवश्यक निर्युक्ति, गा० 263
178. अभिधान राजेन्द्र कोष- आचार्य राजेन्द्र सूरि जी, 1 पृ० 31 179. (i) समवायांग, समवाय 111
(ii) सुत्तागम, पृ० 345-46
180. प्रश्न व्याकरण, 2/1
181. तत्र धर्मफलं तीर्थ, पुत्रः स्यात् कागजं फलम् ।
अर्थानुबन्धिनोऽर्थस्य फलं चक्र प्रभास्वरम् ॥ महापुराण- पुष्पदन्त, 24/6/573 182. करिस्कन्धाधिरूदैव, स्वामिनि मरुदेव्यथ ।
अन्तकृत्केवलित्वेन, प्रपेदे पदमव्ययम् । त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, 1/3/530 183. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति- अमोलक ऋषि जी, पृ० 87-88 184. (i) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, 48/91
(ii) कल्पसूत्र, सू० 199