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________________ दिगम्बर जैन मुनि जी को महाव्रतों से भिन्न प्रत्यास्थान नहीं होता है । हमारे छै अावश्यक में भी प्रत्याख्यान नहीं माना है। कि जैसा श्वेताम्बर में माना जाता है । देखो सामायिक, स्तुति, वंदनक, प्रतिक्रमण, वैनायक और कृति कर्म इत्यादि। (शुभचन्द्र की अंग पनति, पंचास्तिकाय भाषा टीका, ब्रह्म हेमचन्द्र कृत सुअखंधो गा० ६१, ६२, हरिवंश पुराग सर्ग १०) ___ सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, बंदमक, प्रतिक्रमण, कायोत्सन और स्वाध्याय। (सोम सेन कृत त्रिवर्णाचार भ... पो० १६.) जैन--महानुभाव ! अबद्धिक मत के सहकार से दिगम्बर समाज ने उसे उड़ाया है । आवश्यक भाष्य का प्रत्याख्यान अधिकार, पंचाशक, और पंच वस्तु वगैरह में, इस विषय की विशद विचारणा है । अवश्यक छै हैं, -सामायिक, २-चतुर्विशतिस्तव, ३ वंदनक, ४ प्रतिक्रमण, ५ कायोत्सर्ग और ६ प्रत्याख्यान। .. दिगम्बर विद्वानों में छटे आवश्यक के लिये मतभेद है जैसा कि आपने बताया है। - प्रत्याख्यान को उड़ाने से यह मतभेद खड़ा हुआ है मगर प्रा० वट्ट केर तो "मूलाचार" में छै आवश्यक बताते हैं जिन के प्रत्याख्यान आवश्यक में एकासन, प्राचाम्ल, चौथ भक्त, छठ, इत्यादि प्रत्याख्यान लिये जाते हैं। ... दिगम्बर-मुनि एक दफे पाहार करे। जैन--आपको जैन तपस्या की परिभाषा के खोलने से ही इस मान्यता का उत्तर मिल जायगा।.... दिगम्बर जैन श्रमण के तप की परिभाषा निम्न है
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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