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________________ [ ८ ] दिगम्बर मुनिजी शुद्र को अपना शिष्य बना लेवे जैन मुनि बना लेवे, फिर उसके आहार पानी का निषेध कैसा ? 2 दिगम्बर - हमारे मुनि हमारे लिये भी शूद्र का पानी त्याज्य बताते हैं । जैनआप शूद्र के हाथ का सिर्फ पानी नहीं पीते हों परन्तु उनके हाथ का और उनके पानी से धुले हुए एवं संसर्गित शाक, फल, फूल घी दूध इत्यादि को खाते हो शुद्र की मिठाई तक खाते उन्हीं चीजों का आहार मुनिको देते हों, तिर्यञ्च भैंस वगैरह को स्नान से पवित्र बना कर उसका दूध भी मुनि को देते हो और आपके आचार शुद्र भी मुनि को आहार देते हैं। फिर भी आप पानी त्याग की बातें बनाते हो यह कहाँ तक ठीक है? इतना ही क्यों ? शूद्र तुम्हारे मुनि जी बन सकते हैं। इस हालत में पानी का एकान्त निषेध करना, यह अनुचित आज्ञा है शुद्र के यहां इतना ही पर्याप्त हैं कि जैन मुनि आचार शूद्र के घर का आहार पानी ग्रहण नहीं करें, यही न्याय मार्ग है यही स्यादवाद बचन है। A दिगम्बर जैन मुनि खड़े खड़े आहार पानी करे , जैन - खडे और लब्धिरहित करभोजी के हाथ से खुराक के अंश गिरते हैं, इससे जीव विराधना और निन्दा होती है । १ गृहस्थ उन्हें उठाते हैं जिसमें पारिष्ठापनिका समीति का विनाश होता है । खडे २ या चलते चलते खाना पीना तो व्यवहार से भी उचित नहीं है। इसमें श्रासन सिद्धि नहीं हैं। एकासन द्विश्रासन प्रादि व्रत प्रत्याख्यान भी नहीं हो सकते हैं । अतः मुनि पात्र के "जरिये शुद्ध स्थान में स्थिर बैठ कर आहार पानी करे, यही प्रसंस नीय मार्ग है ।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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