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________________ ८९ (२) सींहमुनि उस औषध को कसाई के घरसे या यज्ञस्थान से नहीं लाये थे, एक परम जैनी के घर से लाये थे, जिसका नाम है रेवती । जैनागम से उस समयकी दो रेवतीका जीक पाया जाता है । एक रेवती थी, राजगृही के महाशतक की स्त्री । जिसका वर्णन मीलता है कि पाठ-तणं सा रेवइ गाहावइणी अंतोसत्तरस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूआ अट्टदुहट्टवसट्टा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवी लोलुएच्चुए नरए चउरासीई वासह ठिइएस नेरइएस नेरहएत्ताए उववण्णा । ( श्री उपासक दशांगसूत्र ) यह मरकर नारकीमें गई है, सींह मुनि इसके घरसे औषध नहीं लाये थे । दूसरी रेवती थी, मेंढक ग्रामकी व्रतधारिणी जैन उपासिका । जिसका वर्णन मिलता है कि पाठ- समणस्स भगवओ महावीरस्स सुलसा रेवइ पामुक्खाणं समणोवा सियाणं तिनीसयसाहस्सीओ अट्ठारस सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया हुत्था । ( श्री कल्पसूत्र वीरचरित्र ) पाठ- तरणं तीए रेवतीए गाहावइणीए तेणं दव्वसुद्वेणं जाव दाणेणं सीहे अणगारे पडिलाभिए समाणे देवाउए णिबद्धे, जहा विजयस्स, जाव जम्मं जीवियफले रेवती गाहावइणीए । ( श्रीभगवतीजी सूत्र श०१५ ) सींह मुनि इस मेंढिक ग्रामवाली रेवती के घरसे उक्त औषध को लाये थे, इस रेवती ने भी उक्त औषध को देकर देव आयुष्यका बंध किया और तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया । दिगम्बर विद्वान् भी इस रेवती के इस औषधदानको तारिफ करते है और तीर्थकरनामकर्म उपार्जन करने का कारण यही १२
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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