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________________ :38 मूर्छा लक्षण करणात, सुघटा व्याप्तिः परिग्रहत्वस्य सग्रन्थो मृावान् विनापि शेषसंगेभ्यः ॥ ११२ ।। हिंसा पर्यायत्वात् सिद्धा हिंसान्तरंग संगेषु । बहिरंगेषु तु नियतं, प्रयातु हिंसैव मूर्खात्वं ॥ ११६ ॥ (आ० अमृतचन्द्र सूरि कृत पुरुषार्थ सिद्धि उपाय वि० सं० ६६२) इन सब प्रमाणों से स्पष्ट है कि मूर्छा यानी ममत्व ही परिग्रह है। किसी वस्तु पर ममता होने से परिग्रह विरमण. व्रत में दूषण लगता है, ममता नहीं है वहाँ परिग्रह नहीं हैं श्रममत्व के कारण ही समोसरन आदि से युक्त तीर्थकर भगवान अपरिग्रही हैं। दिगम्बर प्राचार्य जिनेन्द्र की विभूतियाँ बताते हैं - १' इत्थं यथा तब विभूतिरभृज्जिनेन्द्र ? धर्मोपदेशन विधौ न तथा परस्य ।। (भक्तामर स्त्रोत्र श्लो० ३१ । ३०) अशोक वृक्ष सिंहासन, चम्मर छत्र, पन ये सब तीर्थकर की निकट वर्ती विभूति हैं। . ... २ माणिक्य हैम रजत प्रविनिर्मितेन । .. .. .. साल त्रयेण भगवनभितो विभासि ॥ २६ ॥ .. - (कल्याण मन्दिर स्तोत्र) ३ अनीहितु स्तीर्थ कृतोपि विभूतयः जयन्ति ॥ (भा० पूज्यपाद कृत समाधितन्त्रम् ) ४ जलद जलद ननु मुकुट सपतफणं .. (५० बनारसीदास कृत) (पं० चम्पालाल कृत चर्चा सागरं चर्चा २१८ पृ० ४३५३:: साँप की फण भी भगवान की निकट वर्ती विभूति है इन
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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