SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [1 मुनि उपधि-अधिकार दिगम्बर — पांच महाव्रत वाले साघु परिग्रह के त्यागी होते हैं । अतः उन्हें परिग्रह नहीं रखना चाहिये वस्त्र पात्र वगैरह का त्याग करना चाहिये । जैन --- आप परिग्रह का लक्षण क्या मानते हैं ? दिगम्बर -- दिगम्बर शास्त्र में परिग्रह का स्वरूप इस प्रकार है ! १ मूर्छा परिग्रहः ( आ० श्री उमास्वाति कृत तस्वार्थ सूत्र अध्याय ७ सूत्र १७ ) २. ममत्तिं परिवज्जामि, गिम्मम त्ति मुवदिट्ठो | ( आ० कुन्द कुन्द कृत भावप्राभृत गाथा ५० ) मूच्छादि जणण रहिदं, गेहदु समणोयदिवि अपं ( भ० कुन्दकुन्द प्रवचन सार, चरणानु योग चूलिकागाथा २२ ) ४. पाखंडियलिंगेसु व, गिहलिंगेसु व बहुप्पयारेसु । कुव्वंति जे ममत्ति, तेहिं ण णादं समयसारं ॥ ४४३ ॥ टीकांश - निर्गन्थ रूप पाखंडि द्रव्य लिंगेषु कौपीन चिन्हांदि गृहस्थलीगेषु बहु प्रकारेषु ये ममतां कुर्वन्ति । याने जो किसी भी लिंग ऊपर ममत्व रखता है वह परमार्थ को जानता नहीं हैं । `( आ० कुन्द कुन्द कृत समय प्राभृत गा० ४४३ ) ५ या मूर्छानामेयं विज्ञातव्यः परिग्रहो ह्येषः । मोहोदयादुदीर्णो, मूर्छा तु ममत्व परिणामः। १११ ।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy