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________________ ५१ दिगम्बर - तीर्थकर भगवानको ४ घातिकर्मके क्षय होने से १० अतिशय उत्पन्न होते हैं । वें हैं -११ चारसो कोश अकाल न पड़े १२ आकाशमें चले १३ प्राणि वध न होवे १४ कवलाहारका अभाव १५ उपसर्ग का अभाव १६ चतुर्मुखता १७ सर्व विद्यामें प्रभुत्व ९८ प्रतिबिम्ब न पडे १९ आँखों में मेशोन्मेशका अभाव (आंखोकी टीमकार न लगे) २० नख केश बढ़ें नहीं । और इनके जरिये ये अतिशय तीर्थंकरको ही होते है, केवली को नहीं होते हैं अत एव ये तीर्थंकरके अतिशय गिने जाते हैं तीर्थकर भगवान की विशेषता कही जाती है । बात भी ठीक है कि केवली भगवान को ४०० कोश तक सुभीक्षता, चतुर्मुखता वगैरह अतिशय नहीं होते हैं । आ० पूज्यपाद फरमाते हैं कि - "स्वातिशयगुणा भगवतो (श्लो० ३८ ) " पं. लालाराम जैन शास्त्री साफ २ बताते हैं कि--ये दश अतिशय भगवान तीर्थकर परमदेव घातिया कर्मों के नाश होने पर होते हैं (पृ. १४७) जैन - यह तयशुदा बात है कि ये अतिशय तीर्थकरके हैं, केवल नहीं हैं । अतः केवली भगवानके लिये कवलाहार और उपसर्गका अभाव बताना भी भ्रम हो है । जो कि वह वस्तु केवली अधिकार में सप्रमाण स्पष्ट कर दी गई है । अस्तु अब रही तीर्थकरदेव की बात । तीर्थकरोंके इन अतिशयों में कई अतिशय सिर्फ कल्पनारूप ही हैं क्योंकि इनके खिलाफ में दिगम्बर शास्त्र प्रमाण मिलते हैं । दिगम्बर- मानलिया जाय कि सुभीक्षताके लिये कुछ कम क्षेत्र होगा किन्तु तीर्थकरदेव आकाशमें विहार करते हैं, यह तो ठीक है । जैन- -गत केवलीअधिकार में केवली भगवान् भूमि पर विहार करते हैं और शिलापट्ट पर बैठते हैं यह उल्लेख कर दिया गया है वास्तव में तीर्थंकर भगवानके लिये भी वैसा ही है । वे आसन पर बैठते हैं और भूमि पर पैर धर कर विहार करते हैं फरक इतना ही है कि उनके पैरके नीचे देव कमलोंकी रचना करते है।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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