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________________ आजीवन रहते हैं। नतीजा यह है कि सफेद खून और सफेद मांस अतिशय तीर्थकरमें आजीवन रहता है। इस हालतमें केवली तीर्थकर के शरीर में खून मांस आदि सात धातुओंका अभाव मानना, यह तो नितान्तभ्रम ही है। दिगम्बर-आ० श्रुतसोगरजीने बोधप्राभृतकी टीकामें निर्मलता अतिशय से निम्न प्रकार की ३ बातें बताई हैं। १-तीर्थकरको जन्मसे मलमूत्र नहीं होते हैं। २-उनके मातापिताको भी मलमूत्र निहार नहीं होते हैं। तीत्थयरा तप्पियरा, हलहर चक्की य अद्धचक्की य देवा य भूयभूमा, आहारो अत्थि नत्थि नीहारो। ३-तीर्थकरके दाढी मूंछ नहीं होते हैं सिर्फ सिर पर केश होते हैं। देवा वि य नेरइया, हलहर चक्कीय तहय तित्थयरा । सब्वे केसव रामा, कामा निक्कुंचिया होति ॥१॥ जैन-खाना पीना और निहार नहीं करना, यह तो अजीव मान्यता है। वे बीमार होते हैं श्वासोश्वास लेते हैं पसीज जाते हैं छींक खाते हैं डकार लेते हैं जंभाई करते हैं उनको मल परिषह होता है. उनके पुत्र पुत्री सन्तान होती हैं, फिर भी वे निहार नहीं करते हैं यह कैसे मान लिया जाय ? हाँ यह हो सकता है कि उनकी निहार क्रिया गुप्त रहे। विशिष्ट मनुष्यों के लिये इतना होना संभवित है, किन्तु वे मलमूत्र निहार ही करते नहीं है, यह नहीं हो सकता है। यह अतिशय है तीर्थकर का और निहार नहीं करते हैं उनके मातापिता, यह भी बेढव बात है। दिगम्बर विद्वान नख और केश इत्यादिको मल ही मानते हैं, फिर उनके रहने पर भी सिर्फ दाढी मूछके अभाव को ही निर्मलता अतिशय मानते हैं। यह भी विचित्र घटना है। सारांश-उक्त बातें तर्क और आप्तागम से निराधार हैं। कल्पनारूप है।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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