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________________ (६) सयोगी केवली को वचन योग है, अतः औपचारिक मनोयोग भी है। वे मनोवर्गणा के स्कंध लेते हैं। (गोम्मटसार, जीवकांड, गा• २२७, २२८, ६६३, ६६४) केवलीओंको द्रव्यमन हैं, मगर जो वस्तु है वह तो है ही, असत् नहीं है, फिर भी उसे औपचारिक मानना, यह शब्दव्यवहार मात्र ही है वस्तुतः केवलीको द्रव्यमन है। (७) छप्पिय पजत्तीओ, बोधव्या होंति सण्णिकायाणं ॥६॥ टीका-आहारशरीरेन्द्रियानप्राणभाषामन:पर्याप्तयः बोधव्वाबोधव्याः सम्यगवगन्तव्याः होंति भवन्ति सण्णिकायाणं संज्ञिकायिकानां, ये संज्ञिनः पंचेन्द्रियास्तेषां षडपि पर्याप्तयो भवन्ति इत्यवगन्तव्यम् ॥६॥ (दि. आ० वट्टेरकस्वामीकृत मूलाचार परि० १२ पर्याप्तधिकार ) (८) समनस्कामनस्काः । मनो द्विविधं द्रव्यमनो भावमनश्चेति । तत्र पुद्गल विपाकि कर्मोदयापेक्षं द्रव्यमनः। वीर्यान्तरायनोइन्द्रियावरणक्षयोपशमापेक्षया आत्मनो विशुद्धिर्भावमनः तेन मनसा सह वर्तन्ते इति समनस्का । न विद्यते मनो येषां ते इमे अमनस्काः । एवं मनसो भावाभावाभ्यां संसारिणो द्विधा विभज्यन्ते । (तत्वा० अ० २ सू० ११) (सर्वार्थ सिद्धि पृ० ९९) ___ माने-संसारी जीव दो प्रकार के हैं, मनवाले वे समनस्क और मन से रहित वे अमनस्क हैं, तीर्थकर अमनस्क नहीं हैं, समनस्क हैं-मनवाले हैं। भावमन स्तावत् लब्धि उपयोग लक्षणं, पुद्गलावलंबनात् पौद्गलिकं । द्रव्यमनश्च पौद्गलिकम् । (सर्वार्थसिद्धि अ० ५ सू० १९ पृ० १८३) (९) एकेन्द्रियास्तेपि यदष्टपत्रपद्माकारं द्रव्यमनस्तदाऽऽधारण शिक्षालापोपदेशादिग्राहकं भावमनश्चेति, तदुभयाभावाद् संज्ञिन एव।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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