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________________ यस्य च मूर्तिः कनकमयीव, स्वस्फुरदाभा कृतपरिवेषा ।। वागपि तत्त्वं कथयितुकामा, ___ स्याद्पदपूर्वा रमयति साधून् ॥१०७॥ विधेयं वार्य चानुभयमुभयं मिश्रमपि तत् । विशेषैः प्रत्येक नियम विषयैश्चापरिमितैः ।। सदान्योन्यापेक्षैः सकलभुवन ज्येष्ठ गुरुणा । त्वया गीतं तत्वं बहुनय विवक्षेतरवशात् ॥११८॥ (स्वामी समन्तभद्रकृत बृहत्स्वयंभूस्तोत्र) (१७) तस्याग्रशिष्यो वरदत्त नामा, सदृष्टि-विज्ञान-तपःप्रभावात् । कर्माणि चत्वारि पुरातनानि, विभिद्य कैवल्यमतुल्यमापत् ॥२॥ एवं स पृष्टो भगवान् यतीन्द्रः, श्रीधर्मसेनेन नराधिपेन । हितोपदेशं व्यपदेष्टुकामः, प्रारब्धवान् वक्तुमनुग्रहाय ॥४२॥ येऽर्थास्त्वया प्रश्नविदा नरेन्द्र ! चतुर्गतीनां सुखदुःखमूलाः । पृष्टा यथावद्विनयोपचारै रेकाग्रबुद्ध्या शृणु ते ब्रवीमि ॥४३॥ (आ० जटासिंहनन्दिविरचित, वरांगचरित सर्ग ३ पृ० २६-३०) इन दिगम्बर प्रमाणों से निर्विवाद है कि-तीर्थकर वं केवलीओं की वाणी मुखसे निकली है, साक्षरी है, मनोहर है, गम्भीर है, स्याद्वादवाली है, नयनिक्षेपादियुक्त है और गेयपद्धतिवाली है। दिगम्बर-केवलीओं को मन होता है या नहीं इसके लिये भी कुछ मतभेद है।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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