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________________ ४२ तीर्थंकर भगवान को दिव्य ध्वनि और दुंदुभि ये प्रतिहार्य ते हैं । ( बोधप्राभृत गा० ३२ दर्शनप्रा० गा० ३५ टीका) (११) अर्हद्वक्त्र प्रसूतं ॥ ( दिगम्बर पूजापाठ ) (१२) तीर्थंकर व केवली प्रश्न का उत्तर देते हैं जिसमें मुख. व्यापार होता है । (आदि पुराण २४ तथा भरत प्रश्नोत्तर) (१३) कर्मप्रकृति ३० का उदयस्थान । नं. ३ वाले ऊपरके २४ में अंगोपांग संहनन परघात प्रशस्तविहायोगति उच्छवास व कोई स्वर जोड़ने से ३० का उदय सामान्य समुद्धात केवली के " भाषापर्याप्ति" काल में होता है । ( ब्र० शीतलप्रसाद का मोक्षमार्ग प्रकाशक भा० २०४ १०१९५, २०५, २०६ ) (१४) पेक्खंत इव वदंता वा । "स्वयं तीर्थंकर भगवान् मुखसे बोलते हैं" यह 'भाव' तीर्थकर की प्रतिमाओंके मुख पर भी बना रहता है । ( आ० नेमिचन्द्रजीकृत त्रिलोकसार गा० ९८६) (१५) बचन बोलत मनो हंसत कालुष हरं । भवन बावन्न ५२ प्रतिमा नम सुखकरं || ६ || ( दिगम्बर पं० यानतरायकृत नंदीश्वरद्वीपपूजा ) जिनेन्द्रबिंब के मुख की आकृति ही बताती है कि- तीर्थकर भगवान मुखसे बोले । (१६) जगाद तत्त्वं जगतेऽर्थिने ऽञ्जसा ||४ | मोक्षमार्गमशिषन् नरामरान् । नापि शासनफलैषणातुरः ॥ ७३ ॥ काय - वाक्य - मनसां प्रवृत्तयो । नाभवंस्तव मुनेश्चिकिया || नाsसमीक्ष्य भवतः प्रवृत्तयो । धीर ! तावकमचिन्त्यमीहितम् ||७४ || तव वागमृतं श्रीमत्, सर्वभाषास्वभावकम् । प्रणीयत्यमृतं यद्वत्, प्राणिनो व्यापि संसदि ॥ ९७ ॥
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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