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________________ भगवतीजी सूत्र)भी ६०००० प्रश्नोत्तर का संग्रह था, इस से भी साक्षरी वाणीकी ताईद होती है । मगर दिगम्बर शास्त्र कहते हैं कि-तीर्थकर भगवान् मुखसे नहीं बोलते हैं, ब्रह्मरन्ध्र के दशम द्वार से आवाज देते हैं, वही निरक्षरी जिन वाणी है। जैन-यह तो अपौरुषेय बाद सा हो गया। वेद भी बिना मुख . के विनामुख वाले के रचे माने जाते हैं, यह ब्रह्मरन्ध्र निर्गत निर. क्षरी जिनागम भी वैसा ही “आप्तागम" माना जायगा, मगर भूलना नहीं चाहिए कि पुद्गल के संयोग या वियोग से शब्द उत्पन्न होते है जो संयोग, वियोग ब्रह्मरन्ध्रमे नहीं है । वास्तवमें वाणीका स्थान तो मुख ही है । दिगम्बर-किसी दिगम्बर आचार्य के मतसे "तीर्थकर भगवान् सर्व शरीर से बोलते हैं" ऐसा माना जाता है। जैन-यदि सर्व शरीर से वाणी निकले तो एकेन्द्रिय को भी बचन लब्धि का अभाव मानने की जरूरत नहीं रहेगी। क्यों कि विना मुखके वचन लब्धि होती हो तो एकेन्द्री भी उसका अधि. कारी हो जायगा मगर शास्त्र इस बात की गवाही नहीं देते हैं । दिगम्बर शास्त्र तो साफ २ बताते है कि (१) मुखवाले को ही वचन योग होता है, यानी वचन का स्थान मुख ही है । ___ (२) मुख वाले को ही भाषा पर्याप्ति होती है, माने-मुखसे ही वाणी निकलती है। (३) मुख वाले को ही वचन वल है। माने-वचन का सामर्थ्य मुखमें ही है। बात भी ठीक है कि-कंठतालु वगैरह मुखमें ही होते है अतण्व कंठयतालव्य वगैरह की रचना भी मुख से ही होती है। गणधर, मागधदेव, अतिशयमें संख्याभेद ब्रह्मरन्ध्र और सर्वावयव वगैरह भिन्न २ कल्पना ही इस विषय का कमजोरी जाहिर करती हैं। श्वेताम्बर शास्त्र तो बताते हैं कि तीर्थकर देव साक्षरी वाणी से उपदेश देते हैं। मालकोश वगैरह राग गाते हैं और उनके साथ देवों के बाजे बजते हैं।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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