SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भ० ऋषभनाथ तीर्थंकर की भी दिव्य ध्वनि सबसे पहिले बिना गणधर के ही खिरी थी। दि० पं० परमेष्टीदास न्यायतीर्थ कृत चर्चा सागर समीक्षा पृ० १८ इसके अलावा दिगम्बर पुराणों में कई तीर्थकर व केवलोओं से राजा और गृहस्थों के प्रश्नोत्तर का उल्लेख है। सारांश-तीर्थकर वगैरह साक्षरी भाषा बोलते हैं और बिना गणधर ही स्वयं जनता समझ लेती है। दिगम्बर-तीर्थकर की निरक्षरी वाणी को "मागधदेव" समझता है और उसके द्वारा जनता समझती है । __ अतएव वह एक "देव कृत अतिशय" माना जाता हैं। जैन-यह दूसरी कल्पना भी कल्पना ही है हम तीर्थंकर की वाणी को नहीं समझें अविरति मागध देव ही उनकी वाणी समझे और हम उस अल्पज्ञ दुभाषिया की वाणी को ही जिनवाणी यानी आप्तागम मान लेवे यहतो अजीब दिगम्बर फरमान है। हां ऐसा सम्भव हो सकता है कि देव भगवान की वाणी का ब्रोडकास्ट करें किन्तु भगवान् की निरक्षरी वाणी को साक्षरी बना देवें यह नहीं हो सकता हैं । इसके अलावा केवली भगवान् को तो वह "देवकृत-अतिशय" नही हैं अतः उनकी वाणी तो निष्फल ही रहेगी। . दिगम्बर-यद्यपि दिगम्बर शास्त्र तीर्थकरकी निरक्षरी वाणी को देवकृत अतिशय के जरिए साक्षरी बनना मानते हैं । किन्तु दिगम्बर मान्य आचार्य यति वृषभ उस बातका स्वीकार करते नहीं है । वे तो दिव्यध्वनिको देवकृत अतिशय में नहीं किन्तु केवलज्ञान के अतिशय में गिनाते हैं। कहा है कि घादिक्खएण जादा, एक्कारस अदिसया महत्थरिया। एवं तित्थयराणं, केवलणाणम्मि उप्पण्णे ॥१०३॥ माने तीर्थकर भगवान् को घाति कर्मों के क्षय होने पर ११ अतिशय उत्पन्न होते हैं। (आचार्य यतिवृषभ कृत त्रिलोक प्रज्ञप्ति, प० ४ गा० १०३)
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy