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________________ 8 देवर्षिणां प्रशौचाय, स्नानाय गृहमेधिनां ।। (मा• शिव कोटि कृत रत्नमाला श्लोक ६३, ६४ ) (जैन दर्शन व० ४ अं३ पृ० १११-१२ अं४ पृ ५५-५८ ) . २ मुहूर्त गालितं तोय, प्रासुकं प्रहर द्वयम् । उष्णोदक महोरात्र-मतः संम्मूर्छितं भवेत् ॥ (रत्न माला, जैन दर्शन वर्ष ४ अं० ३ पृ१६)... ३ वृक्षपर्णोपरि पतित्वा यज्जलं यत्युपरि पतति तस्य प्रासुक त्वा द्विराधनाप्कायिकानां जीवानां न भवति ( आ० कुन्द कुन्द कृत भाव प्राभूत गा० ११ की टीका पृ० २६१) ४ विलोडितं यत्र तत्र विक्षिप्तं वस्त्रादि गालित जलं । पानी के विलोड़ित इत्यादि चार भेद हैं । विलोडित छना हुआ पानी अचित्त है । पाषाण स्कोटितं इत्यादि पानी भी विलोड़ित मान जाते हैं। (दि. मा. श्रुत सागर कृत तत्वार्थ सूत्र टीका) ५ अत्यक्तात्मीय मसद्वर्ण-संस्पर्शादिक मंजसा। अप्रासुकमथा तप्तं, नीरं त्याज्यं व्रतान्वितैः॥ -- (प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, संधी २२, श्लो०६१) ६ नभस्वता हतं ग्राव-घटी यन्त्रादि ताडितम् . तसं सूर्या शुभिर्व्याप्यां मुनयः प्रासुकं विदुः ॥ ५३॥ स्नानादि ॥ ५४॥ (पं० मेधावि पं० कुल तिलक कृत धर्मसंग्रह भावकाचार) ® दिगम्बर मत में माकाश चारण सिद्धि प्राप्त मुनि देवर्षि माने जाते हैं। (चारित्र सार पृ० २२, प्रवचनसार पृ० ३४६ जैन दर्शन व० ४ पृ० १०) अथवा एक विहारी या मासोपवासादिक धारक महामुनि देवर्षि है। (जैन दर्शन, १०.४.१५९) .
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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