SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ममिनिकाय पृ०३०।। १०४ उपासक दशांग ) वगैरह वगैरह। कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस मुनि संघ ने उपरोक्त वातों में सुधार कर और भ० महावीर स्वामीकी आज्ञाको अपना कर उनके संघ में प्रवेश कीया था परन्तु यह संघ अनेकांत दृष्टि से अचेलक रहने में भी स्वतंत्र था। इस संघ की मुनि परम्परा आज भी श्राजीवक, त्रैगशिक और दिगम्बर इत्यादि नाम से विख्यात है। (हलायुधकृत अभिधान रत्नमाला, विरंचीपुर का शिलालेख, तामिल शब्द कोष, सूत्रकृतांगटीका) इस प्रकार ये दोनों संघ श्रमण संघ में सम्मिलित हो गये । उस समय वह श्रमण संघ अविभक्त था । उसमें न वस्त्र का एकांत आग्रह था ? न नग्नता का ? न पुरुष जाति से पक्षपात था! न स्त्री जाति से ! इसी प्रकार ६०० वर्ष तक अविभक्तता जारी रही। बाद में किसी एक मुहूर्तकाल में दिगम्बरत्व को प्रधानता देकर, माजीवक संघ का कोई दल अलग होगया, और उसने प्राजीवक मत की शीतोदक ग्रहण वगैरह जो मान्यताएं थीं उनमें से कई को पुनः स्वीकार कर लिया। उस समय उसके नायक थे मा० शिव भूति याने भूतबली और श्रा० कुंद कुंद वगैरह दिगम्बर--उपलब्ध दिगम्बर शास्त्रों में भी शीतोदक ग्रहण मादि के प्रमाण मिलते हैं ? ॐ जैन-हाँ। आपकी जानकारी के लिये थोड़े से प्रमाण देता हूँ .१ पाषाण स्फोटितं तोयं, घटी यंत्रेण ताडितं।. सनः संतप्त वापीना, प्रासुकं जल मुच्यते ॥
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy