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________________ (५) आ० पूज्यपाद तीर्थकर का तप फरमाते हैंअजुकूलायास्तीरे, शालद्रुमसंश्रिते शिलापट्टे। अपराह्ने षष्ठेनाऽऽस्थितस्य खलु जूंभिकाग्रामे ॥११॥ यह भगवान का आखिरी छद्मस्थ तप है। वैसे तीर्थकर भग. वान् केवली जीवन में भी तप करते हैं । केवली तीर्थकर खाते हैं पीते हैं और तप भी करते हैं, देखिये आद्यश्चतुर्दशदिन-विनिवृत्तयोगः । षष्ठेन निष्ठितकृतिर्जिनवर्धमानः। शेषा विधूतघनकर्मनिबद्धपाशाः। मासेन ते यतिवरास्त्वभवन् वियोगाः ॥२६॥ (निर्वाणभक्ति लो० २६) मोक्ष जाने से पहिले केवली भगवान् आदिनाथने चौदह दिन के उपवास किये, केवली तीर्थकर श्री वर्धमान स्वामी ने षष्ठ तप किया, और शेष २२ केवली तीर्थंकरोंने एक महिने का अनशन तप किया। अंतमें ये सब कर्मपाश को तोडकर भयोगी-अशरीरी बने घ मोक्षमें पधारे, यह निर्वाण तप है। यहाँ षष्ठ शब्द का अर्थ दो दिन किया जाय तो वह भ्रम है, यह शब्द दिगम्बर परिभाषामें भी तपस्या का ही सूचक है, इससे षष्ठ का अर्थ बेला-तप ही होता है। इस निर्वाण तपके पाठसे स्पष्ट है कि-केवली भगवान् केवली जीवन में आहारपानी लेते हैं, सीर्फ निर्वाणसे अमुक दिन पहिले आहार पानी को छोड़ देते हैं, और द्रव्य मन, वचन, और काया की क्रियाओं को तो अयोगी स्थान में जाने पर ही रोक देते हैं। ____ श्वेताम्बर मान्यता में भी तीर्थंकरों का निर्वाणतप उपरोक्त पाठ के अनुसार ही है या कहा जाय कि उक्त पाठ श्वेताम्बर मान्यता का प्रतिघोष. ही है। देखिये, चतुर्दश पूर्वधारी श्री भद्रबाहुस्वामी फरमाते हैं कि-- निव्वाणमंतकिरिया, सा चौदसभत्तेण पढमनाहस्स । सेसाण मासिएणं, वीरजिणिदस्स छद्रेणं ॥ ॥३०६॥
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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