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________________ [ १२८ ] • मगर भूलना नहीं चाहिये कि नवम गुणस्थान के पहिले या बाद में पर्याप्त पुरुष को स्त्रीवेद और अपर्याप्तयन का उदय कभी भी नहीं होता है । यह भी ख्याल में रखना चाहिये कि पर्याप्त स्त्री को भी पुरुषवेद, नपुंसक वेद और आहार द्विक का उदय कभी नहीं होता है । ( कर्म गा० ३०० - ३०१ ) और नवम गुण स्थान में वेद का उदय विच्छेद होने के पश्चात् वे श्रवेदि होते हैं। पुरुष, स्त्री और नपुंसक ये तीनों क्षपक श्रेणी करते हैं । तेरहवें गुण स्थान में पहुँचते हैं किन्तु स्त्री और नपुंसक तीर्थंकर नहीं बनते हैं क्योंकि उन दोनों में तीर्थकर नाम की प्रकृति सत्ता से ही नहीं होती है । ( गोम्मट सार कर्मकांड गा० ३५४ ) थी पुरुसोदय चड़िदे, पुव्वं संढं खवेदि थीथी । संसदये पुन्वं, थी खविदं संढ मत्थिति ॥ ३८८ ॥ क्षपक श्रेणी में चढ़ते समय पुरुष नपुंसकवेद का स्त्री नपुंसक वेद का और नपुंसक स्त्रीवेद का प्रथम खात्मा करते हैं । ( कर्म्म० गा० ३८८ ) वेदे मेहुण संख्या ॥ ६ ॥ वेद है, वहां तक "मैथुन संज्ञा" है । ( गोम्मटसार जीव काण्ड ग०० ६ ) थावर काय पहुदी संढो, सेसा असण्णी आदी य । प्रणय द्वियस् य पढमो, भागोत्ति जिणेहिं गिदि ६८४ नपुंसकवेद स्थावरकाय मिथ्यादृष्टि अनिवृत्ति के प्रथम भाग तक होता है और शेष दोनों वेद झसंशी पंचेन्द्रिय से अनि
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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