SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १२७ ] न मुच्यन्ते भवात्तस्मात् ते ये लिङ्गकृताग्रहाः ॥ ८७ ॥ पुरुष या नग्न ही मोक्ष में जाते हैं इत्यादि लिंग के श्राग्रह से संमार बढ़ता है। जाति लिंग विकल्पेन, येषां च समयाग्रहः । ते न प्राप्नुवन्त्येव परमं पदमात्मनः ॥ ८६ ॥ , मैं ब्राह्मण हूं मैं पुरुष हूं या नग्न हूं ऐसा आग्रह मोक्ष बाधक है । ५- प्रा० नेमिचन्द्रसूरि "स्त्री मोक्ष' का क्रम बनाते हैं ( गोम्मटसार ) आहारं तु पत्ते, तिथं केवलिणि, मिस्सयं मिस्से । प्रमत्त गुण स्थान में आहारकद्विक होता है । ( गोम्मट सार कर्मकाण्ड गा० २६१ ) अपमत्ते सम्मत्तं अन्तिम तिय संहृदीय sपुब्वम्मि । छच्चेव गोकसाया, अणिट्टिय भाग भांगेसु ॥ २६८ ॥ वेदात कोह माणं, माया संजलण मेव ॥ २६६ ॥ * अर्थ ७ अप्रमत्त गुण स्थान में सम्यक्त्व प्रकृति और अंत के तीन संहनन का ८ अपूर्व गुणस्थान में हास्यादि छै कषायों का तथा अनिवृत्ति गुण स्थान में निन वेद और तीन कषायों का उदय विच्छेद होता है । ( गोम्मटसार कर्मकांड गा० २६६ - २६६ ) माने- पुरुष स्त्री और नपुंसक ये तीनों ६ वें गुणस्थान को पाते है तब उनके वेदों का उदय विच्छेद है । बाद के गुण स्थान में उनको अपने २ वेद कषाय का उदय नहीं होता है उनको नाम कर्म का उदय विद्यमान होने के कारण शरीर की रचना मात्र रहती है और वे श्रवेदी माने जाते हैं । पज्जते वि इत्थी बेदाऽपज्जति परिहीयो ॥ ३०९ ॥
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy