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________________ [१६] न च पुंदेहे स्त्रीवेदोदयभावे प्रमाणमङ्गं च । भावः सिद्धौ पुंवत्, पुंसोऽपि न सिध्यतो वेदः॥ ३६॥ पुंसि स्त्रियां स्त्रियां मुंसि, अतश्च तथा भवेद् विवाहादिः । यतिषु न संवासादिः, स्यादगतौ निष्प्रमाणेष्टिः॥ ४२ ॥ अनडह्या ऽनड़वाही, दृष्टवानड़वाहमनड्डुहारूढम् । स्त्रीपुंसेतरवेदो, वेद्यो नानियमतो वृत्तेः ॥ ४३ ॥ नाम तदिन्द्रिय लब्धेरिन्द्रियनिवृत्तिमिव प्रमाद्यगम् । वेदोदयाद् विरचयेद्, इत्यतदड़ो न तद्वेदः ॥ ४४ ॥ या पुंसि च प्रवृत्तिः, पुंसि स्त्रीवत् स्त्रिया स्त्रियां च स्यात् । सा स्वकवेदात् तिर्यक्वद लाभे मत्तकामिन्याः॥ ४५ ॥ . अर्थात्-वेद कषाय का परिवर्तन नही होता है। पुरुष को स्त्री वेदोदय नहीं होता है । अतएव कीसी भी वेद के द्रव्यभाव भेद नहीं हैं स्त्री की शरीर रचना यह नामकर्म का ही भेद है। उसके अस्तित्व में केवलज्ञान हो सकता है एवं स्त्री मोक्ष की अधिकारिणी है। दिगम्बर-स्त्री को पहिले के "तीन संहनन" का अभाव है अतः मोक्ष नहीं मिलता है । देखिए सन्ती छ स्संहडणो, बज्जदि मेघ तदोपरं चापि । सेवट्टादि रहितो, पण पण च दुरेग संहडणो ॥ ३१ ॥ अंतिम तिग संहडण स्मुदयो पुण कम्मभूमि महिलाणं । भादिम तिग संहडणं, णस्थिति जिणेहिं णिदिटुं ॥३२॥ (गोम्मटसार कर्मकांड गा० ३१, ३.) माने-स्त्रियों को युगलिक काल में पहिले के तीन संहनन होते हैं पीछे के तीन सहनन नहीं होते हैं बाद में कर्मभूमि होते
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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