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________________ [ १०५ ] दिगम्बर मुनिओं को जगत के सामने निंद्य कलंकित जाहिर करती है, इस भूल को उसे सुधार लेना चाहिये । “कहिं विसमा को झूठा जाहिर कर देना चाहिये और दिगम्बर मुनिमंडली को इस निन्दनीय आक्षेप से बचा लेना चाहिये। ___ यदि दिगम्बर शास्त्र छटे गुणस्थान में द्रव्य स्त्रीवेद मोर द्रव्य नपुंसक वेद का उदय विच्छेद और नवमें गुणस्थान में तीनों भाव बेदका उदय विच्छेद बताते जब तो उन दिगम्बर मुनिओं के लिए तीनों वेद का उदय या कहिं समा कहिं विसमा मानना उचित ही था। मगर पा० नेमिचन्द्रजी डंके की चोट एलान करते हैं किमरद को नवमें गुणस्थान तक पुरुष वेदका उदय होता है, स्त्री घेदका उदय तो उसे कभी भी नहीं होता है (गा० ३०० ) एवं स्त्री को नव में गुणस्थान तक स्त्री वेद का उदय होता है, उसे कभी भी पुरुष वेद या नपुंसक वेद का उदय होता ही नहीं है (गा० ३०१) . अतः-पुरुष को तीनों घेद का उदय व वेदपरावर्तन मानना यह दिगम्बर शास्त्रों से खिलाफ सिध्धांत है। वास्तविक बात यही है कि-पुरुष स्त्री व नपुंसक उपशम या क्षपक श्रेणी से मवमें गुणस्थान को पाते हैं वहां तक उन्हें स्वस्ववेदोदय रहता है। महान् व्याकरण निर्माता दि० प्रा० शाकटायन वेदकषाय के लिये व्यवस्था करते हैं, जिसमें भी वेद परिवर्तन को तर्कणा से भी अग्राह्य बताते हैं देखिये। स्तन जघनादि व्यंगे, स्त्री शन्दोऽर्थे न तं विहायैषः । दृष्टः क्वचिदन्यत्र, त्वग्निर्माणकवद् गौणः ॥ ३७ ॥ 'आषष्ठया स्त्री' त्यादौ, स्तनादिभिस्त्रीस्त्रिया इति च वेदः स्त्रीवेदत्यनुबन्धा, पन्यानां शतपृथत्वोक्तिः ॥ ३८॥ .....
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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