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________________ [ ९४ ) है-एवं गुणविशिष्टो पुरुषो. जिनदीक्षाग्रहण-योग्यो भवति, यथायोग्यं सच्छूद्राद्यपि । (भा कुन्दकुन्दकृत प्रवचनसार की भा० जगसेनकृत टीका ) १० धीवर की लड़की “काणा" तुलिका होकर व्रत करके खर्ग को गई। ११=भैंसों तक के माँस को खानेवाले मृगध्वज ने मुनिदत्त मुनि से दीक्षा लेकर तप द्वारा घातिया कर्मों का नाश करके जग. त्पूज्यता प्राप्त की। (दि० भाराधनाकथाकोच, कथा-५५) १२-सम्यग्दर्शनसंशुद्धाः, शुद्धकवसनावृताः । सहस्रशो दधुः शुद्धाः, नार्यस्तत्रार्यिकावतम् । : (भा०. जिनमेनकृत हरिवंशपुराण स० २ श्लोक १३३ ) "अशुद्ध वंश की उपजी सम्यदर्शनकार शुद्ध कहिले निर्मल अर शुद्ध कहिए श्वेत वस्त्र की धरन हारी हजारों रानी अर्यका भई अर कइ एक मनुष्य चारों ही वर्ण के पांच अणुव्रत, तीन गुणवत चार शिक्षा व धार श्रावक भए अर चारों ही वर्ण की कइ एक स्त्री श्राविका भई और सिंहादिक तीर्यच बहुत श्रावक के व्रत धारते भये । यथाशक्ति नेम लिये तिष्ठ और देव सम्यक् दर्शन ने धारक अव्रत सम्यग्दृष्टि हुए जिन पूजा विष अनुरागी भए । [दि० पं० दौलनराम जैपुरवालेकृत हरिवंशपुराण स० २ ० १३॥ से ११५ की वनिका जिनवाणी कार्यालय कलकता से मुद्रित पृष्ठ २३ जै। ३९-२३] १३-गोत्र कर्म जीव के असली स्वभाव को घात नहीं करता, इसी कारण अघातीया कहलाता है.। केवलज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद अर्थात् तेरहवें गुणस्थान में भी इसका "उदय" बना रहता है,
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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