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________________ [:९) ४-म्लेच्छभूमिज मनुष्याणां सकलसंयमग्रहणं कथं भवतीति नाशकनीयम् ? दिग्विजयकाले चक्रवर्तिना सह आर्यखण्डमागतानां संयमप्रतिपत्तेरविरोधात् । अथवा तत्कन्यानां चक्रवर्त्यादिपरिणीतानां गर्भेषत्पन्नस्य मातृपक्षापेक्षया म्लेच्छव्यपदेशभाजः संयमसंभवात् । माने-म्लेच्छ भूमि के अनार्य भी दोनों तरह के निमित्त पाकर दीक्षा लेते हैं। (लब्धिसार गा० १६५ टीका) ५-दीक्षायोग्यास्त्रयोवर्णाश्चतुर्थश्च विधोचितः मनोवाकायधर्माय मता सर्वेऽपि जन्तवः। उच्चावचजनप्रायः, समयोऽयं जिनेशिनाम् । नैकस्मिन् पुरुष तिष्ठे-देकस्तम्भ इवालयः॥ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और संस्कारित शूद्र ये दीक्षा के योग्य हैं यानी अधिकारी हैं। जैनधर्म यह किसी खास जाति का धर्म नहीं है, किन्तु उच्च नीच सब मनुष्यों से संकलित धर्म है। (पशस्तिलक चम्) ६ समाधि गुप्त मुनि ( चारित्र सार) ७ आचारोऽनवद्यत्वं, शुचिरुपस्कारः शरीर शुद्धिश्च । करोति शूद्रानपि देव द्विजातितपस्विपरिकर्म सुयोग्यान् ॥ ( नीतिवाक्यामृत) ८ शूद्रोप्युपस्काराचार-वपुः शुध्यास्तु तादृशः। . जात्यादिहीनोपिकालादि-लन्धौह्यात्मास्ति धर्मभाक् ॥ (दि. पं०) भाशावरकृत सागाधर्मामृतम् )
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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