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________________ ८६ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन तोमर, शूल, बर्धी, तलवार, बसुला आदि निर्मित करते थे । प्रायः प्रत्येक गाँव में लोहार होता था, पर सम्भवतः कच्चे माल की उपलब्धि और श्रमवैशिष्ट्य के कारण इन उद्योगों का स्थानीकरण भी हो गया था । जातककथा में लोहारों की ऐसी बस्तियों का उल्लेख है जिनमें ५०० लोहार निवास करते थे । गुप्तकाल के लौहोद्योग की उन्नति का ज्वलन्त उदाहरण मेहरौली का लौह स्तम्भ है जो सदियों से हवा-पानी के थपेड़े सहन कर रहा है, लेकिन आज तक उसमें कहीं भी जंग नहीं लगा । स्वर्ण- उद्योग जैन ग्रन्थों में सोने-चाँदी और मणियों के विविध कलापूर्ण आभूषणों तथा विभिन्न आकार-प्रकार के मणिरत्नों के बार-बार आये उल्लेख इस बात के प्रमाण हैं कि स्वर्णकारों का व्यवसाय उत्कर्ष पर था । स्वर्णकारों की गणना समाज के सम्पन्न वर्ग में की जाती थी । वे सोने की शुद्धताअशुद्धता की पहचान करने में सक्षम थे । अच्छा सोना अग्नि में तपकर शुद्ध हो जाता था । स्वर्ण को आग में तप्तकर फिर अम्ल से प्रक्षालित किया जाता था, तदुपरान्त पुनः अग्नि में डालने पर वह रक्तवर्ण का हो जाता था । 1 राजाओं के आसन, यान, पीठ, भवन आदि सोने चाँदी के बनाये जाते थे । विविध प्रकार के मणिजटित भवन भी निर्मित किये जाते थे । " लोग सोने-चाँदी से निर्मित विविध आभूषण धारण करते थे । ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार मेघकुमार को दीक्षा से पूर्व हार, अर्धहार, एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, प्रालम्ब, पाद, कटक, त्रुटित, केयूर, अंगद, मुद्रिकायें, कटिसूत्र, कुंडल, चूड़ामणि, मुकुट आदि आभूषणों से कृत किया गया था । अश्वों और हाथियों को भी सोने चाँदी के आभूषणों से मण्डित किया जाता था । १. प्रश्नव्याकरण, ३ / ५ निशीथ चूर्णि भाग १ गाथा २ / १९ " २. सूची जातक - आनन्द कौसल्यायन, जातककथा, भाग ३ पृ० ४३४ ३. उत्तराध्ययन २५/२९ ४. औपपातिक, सूत्र ३३ ५. ज्ञातावमंकथांग १/२५ ६. वही १/ २२८ ७. औपपातिक सूत्र ४१
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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