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________________ ८४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन जातककथा में उल्लेख है कि बनारस बस्त्रों के लिये प्रसिद्ध था । बनारस में क्षौममिश्रित कम्बल बनते थे। वहाँ की स्त्रियाँ महीन सूत कातती थीं।' जैनग्रन्थों में उत्तरापथ और दक्षिणापथ के व्यापारियों द्वारा परस्पर वस्त्रों के आदान-प्रदान करने के उदाहरण प्राप्त होते हैं। भारत के वस्त्र विदेशों में भी निर्यात किए जाते थे । २-धातु उद्योग खानों और उनसे निकलने वाले खनिज पदार्थों के सम्बन्ध में प्राप्त सन्दर्भो से पता चलता है कि खनन क्रिया विस्तृत रूप से की जाती थी। खान खोदने वाले श्रमिक “क्षितिखनक" कहे जाते थे ।" देश को समद्ध खनिज सम्पदा से धातु-उद्योग में भी पर्याप्त उन्नति हुई थी। धातु-उद्योग धनोपार्जन का साधन था। महाकालनिधि में धातुओं का शोधन होता था । ज्ञाताधर्मकथांग से पता चलता है कि पुरुषों की सीखने की ७२ कलाओं में एक कला धातुवाद भी थी। अम्ल से धातुओं का शोधन किया जाता था। धातु तथा औषधियों के संयोग से रासायनिक प्रक्रिया द्वारा स्वर्ण भी बनाया जाता था । निशीथचूर्णि में तांबे को स्वर्ण के पानी से सिक्त करके स्वर्ण बनाने का उल्लेख है।' पीतल और कांसे के बर्तनों के उल्लेख से टीन और जस्ते के प्रयोग का संकेत मिलता है। - इस्पात बनाने के लिये लोहा ढाला जाता था । सूची (सुई) के उल्लेख १. महावेस्सर जातक-आनन्द कौसल्यायन, जातककथा ६/५४२ २. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ६ गाथा ६२४४ ३. ज्ञाताधर्मकथांग १७/३ ४. उत्तराध्ययन सूत्र ३६/७३-७६; बृहत्कल्पभाष्य, भाग ५ गाथा ५६८६; __निशीथचूर्णि, भाग २ गाथा १०३१, १०३० ५. निशीथचूणि, भाग ३ गाथा ३७२० ६. धातुबातेण वा से अत्यं करेति, महाकालमंतेण वा से णिहि दरिसेति" निशीथचूणि, भाग २ गाथा १५७७ ७. ज्ञाताधर्मकथांग १/८५ ८. "जेणं धातुपाणिएण तंबगादि आसित्तं सुवण्णादि भवति सो रसो भण्णति" निशीथचूर्णि, भाग ३ गाथा ४३१३ ९. आचारांग २/६/१/१५२
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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