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________________ ५४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन व्रीहि, साठी, कोद्रव, मक्का, कंगु, बाजरा, रालक, तिल, मूग, माष, अलसी, चना, मसूर, णिकाव ( चवलगा ), इक्षु, तूवर, कलाय, धाणग और मटर आदि थे।' बृहत्कल्पभाष्य में १७ प्रकार के धान्यों का उल्लेख हुआ हैं जिनमें से निम्न महत्त्वपूर्ण हैंयव इसकी खेती कम उपजाऊ भूमि पर की जाती थी। भोजन में इसका पर्याप्त प्रयोग होता था । यव से "यवाग्' बनाया जाता था जो उस समय का प्रसिद्ध पेय था । पाणिनि ने भी इसका उल्लेख किया है। चावल धान्यों में प्रमुख चावल था। इसकी खेती बहुतायत से होती थी। शालि और व्रीहि, चावलों की श्रेष्ठ जातियाँ मानी जाती थीं। इनके अतिरिक्त निम्न प्रकार के चावल भी थे जिन्हें निवार और साठो कहा जाता था । यह निर्धन लोगों का मुख्य भोजन था । ज्ञाताधर्मकथांग में शालि की फसल उगाने का वर्णन आया है। वर्षाकाल के आरम्भ में अच्छी वृष्टि हो जाने के बाद छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर शालि-कणों की बुआई कर दी जाती थी। जब पौधे कुछ बड़े हो जाते थे तो उन्हें उखाड़कर दूसरे स्थान पर पुनः रोप दिया जाता था। जब पौधे खूब फैल जाते थे और बालियों में दाने पड़ जाते थे तथा वे पक जाते थे तो उन्हें तीक्ष्ण द्रांति से काट कर उनकी मड़ाई करके भूसे से अलग कर लिया जाता था।" यूनानी लेखक स्ट्राबो ने भी एक स्थान से धान के पौधे को उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगाकर बोने १. धण्णाइ चव्वीसं, जब-गोहुम-सालि-वीहि-सट्ठिया । कोद्द व-अणया-कंगु, रालग तिल-मुग्ग-मासा य ।। अतसि हिरिमंय तिपुड, णिप्फाव अलसिंदरा य मासा य । इक्खु, मसूर तुवरी कुलत्थ धाणग-कला य । निशीथचूर्णि भाग २, गाथा १०२९, १०३० २. घडिएयरं खलु धणं, सणसत्तरसा बिया भवे धन्नं ।। बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा ८२८ ३. उत्तराध्ययनचूणि गाथा १८७ ४. पाणिनि अष्टाध्यायी ४/२/१३६ ५. ज्ञाताधर्मकथांग ७/१२१५
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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