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________________ ५२: प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन फसल काटने के कार्य को "असिसहि" कहा गया है। प्रायः कृषक फसल काटने का कार्य स्वयं ही करते थे। वे बड़ी सावधानी से धान्य को पकड़कर तीक्ष्ण धार वाली तलवार (हसुआ) से काटते थे। पर कभी-कभी फसलों को काटने के लिये अस्थायी कर्मकर भी नियुक्त किये जाते थे।३ काटने के बाद धान्य को खलिहान में, जिसे “खलवाडा" कहते थे, एकत्रित करते थे।४ पंक्तिबद्ध बैलों से धान्य की मड़ाई की जाती थी जिसे "मलन" कहा जाता था। धान्य को भूसे से अलग करने के लिए सूप से फटका जाता था। वायु की दिशा को देखते हुए धान्य को ऊपर से नीचे गिराया जाता, जिससे धान्य और भूसा अलगअलग हो जाते। राजप्रश्नीयसूत्र में एक खलिहान का बड़ा सुन्दर वर्णन आया है जिसमें एक तरफ धान्य के ढेर लगे हुये थे और दूसरी ओर उड़ावनी हो रही थी। रक्षक पुरुष भोजन कर रहे थे। आज भी गांवों में प्रायः यही पद्धति अपनायी जाती है। जिस स्थान पर धान्य कूटे जाते थे उस स्थान को "गंजसाला' कहा जाता था।' धान्य-भण्डारण जैन ग्रन्थों में धान्य के वैज्ञानिक भण्डारण का उल्लेख मिलता है। इस विधि से धान्य कई वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता था। बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार धान्य के लिये भण्डारण-गृह निर्मित किये जाते थे । फूस और पत्तियों से कोठार बनाये जाते थे और अन्दर की भूमि को पहले गोबर से लीपा जाता था और फिर दीवार के सहारे धान्य का ढेर लगाया जाता था; फिर उसे बांस और फूस से ढककर गोबर से लीप दिया जाता था। वर्षा ऋतु में धान्य को कोठे में, दोरों में, मंच, टाण १. असिपहि जुणति-ज्ञाताधर्मकथांग ७।६ २. भगवतीसूत्र १४।७।५१ ३. व्यवहारभाष्य ६।२०४ ४. राजप्रश्नीय सूत्र ८२; ज्ञाताधर्मकथांग ७।१९ ५. प्रश्नव्याकरण १।१७, २।१३; ज्ञाताधर्मकथांग ७।१९ ६. निशीथचूणि भाग १, गाथा २९३; बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा १२१९ ७. राजप्रश्नीय सू० ८२ ८. निशीथचूर्णि भाग २, गाथा २५५४ ९. बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, गाथा ३३१०
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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