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________________ तृतीय अध्याय : ४३ कौटिल्य के अनुसार जो कृषक राज्य की भूमि पर कृषि करते थे आधी उपज के अधिकारी होते थे। जिन कृषकों को खेती के उपकरण और बीज राज्य की ओर से दिये जाते थे उन्हें उपज का चौथा या पाँचवाँ भाग प्राप्त होता था। कई बार कुटुम्बी खेतों में अस्थायी कर्मकरों की भी नियुक्ति कर लेते थे । व्यवहारभाष्य से ज्ञात होता है कि एक कुटुम्बी ने शालि काटने के लिए मूल्य देकर अस्थायी कर्मकर रखे थे। वे ठीक से काम करें इसलिए उनकी निगरानी कुटुम्बी की एक दासी कर रही थी। कृषक अपने कार्य में बड़े दक्ष होते थे। आवश्यकचूर्णि से ज्ञात होता है कि एक कृषक इतना दक्ष था कि वह एक हाथ से हल चलाता था और दूसरे हाथ से फल तोड़ता था। कृषि-उपकरण प्रश्नव्याकरण से ज्ञात होता है कि उत्तम फसल के लिए कृषि के विविध उपकरणों का प्रयोग किया जाता था। कृषि में प्रयक्त उपकरणों में हल, कुलिय, कुदाल, कैंची, सूप, पाटा, मेढ़ी आदि उलिलिखत हैं। खेती के लिए तीन प्रकार के हलों का प्रयोग किया जाता था--हल, कुलिय दन्तालग। __ साधारण प्रकार का हल जिसके आगे नुकीला लोहा लगा रहता था और जो भूमि को तोड़ता चला जाता था हल कहा जाता था।६ लोहे के तीक्ष्ण धार वाले हल को सौराष्ट्र में “कुलिय" कहा जाता था। इसकी लम्बाई दो हाथ होती थी और इससे मिट्टी तोड़ी जातो थी। सामने की ओर लोहे के दांतों से युक्त होने के कारण इस प्रकार का हल दन्तालग कहा जाता था । आवश्यकचूणि में उल्लिखित हल नेगल भी दन्तालग की. १. कौटिलीय अर्थशास्त्र २/२४/४१ २. व्यवहारभाष्य भाग ६/२०८ ३. आवश्यकचूर्णि भाग २ पृ० १५३ ४. प्रश्नव्याकरण १/१७, १८,२८ ५. वही १/१८; निशीथचूणि भाग १ गाथा ६०, "हलदंताला “कुलित" ६. निशीथचूणि भाग १/ गाथा ६० ७. “कुलितं णाम सुरट्ठाविसते दुहत्थप्पमाणं कठें तस्स अंते अयकीलगा तेसु एगायओ य लोहपट्टो अडिज्जति तणं तं सव्वं छिदंतो"-वही
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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