SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन थे।' निशीथचूणि से ज्ञात होता है कि कुछ कृषक भूमि किराये पर लेकर उसमें कृषि-कर्म करते थे। __ कृषक प्रायः अपने परिवार के सहयोग से खेती करते थे । निशीथचूर्णि से ज्ञात होता है कि एक कृषक के चार पुत्र थे, वे सब मिलकर कृषि-कर्म करते थे ।३ धनो और साधन-सम्पन्न किसान, जिन्हें कुटुम्बी कहा जाता था, अपने खेत स्वयं न जोतकर उसके लिए कर्मकर नियुक्त करते थे और उसके बदले में उन्हें उत्पादन का कुछ भाग दे देते थे। पिण्डनियुक्ति से ज्ञात होता है कि केवल भोजन पर भी कर्मकरों को नियुक्त किया जाता था। एक कुटुम्बो हल चलाने के बाद हलवाहों को उनके कार्य के अनुसार, पृथक-पृथक् भोजन देता था । मगध के पराशर नामक कुटुम्बी के पास ५०० हलवाहे ( कृषक ) थे जो वर्षा ऋतु के आगमन पर उसके खेत में हल चलाते थे । ६ व्यवहारभाष्य से ज्ञात होता है कि कुछ छोटे कृषक भी कृषि में सहायता के लिये कर्मकरों को नियुक्त करते थे। एक कृषक ने कृषि-कर्म आरम्भ किया, वह स्वयं भी कार्य करता था और कर्मकरों से भी सहायता लेता था। क्रमानुसार उचित भृत्ति भी देता था, यहाँ तक कि अकाल में भी पूरा भोजन देता था। बटाई पर भी श्रमिक रखे जाते थे जिन्हें भाइलग्ग ( भागीदार ) कहा जाता था। वे निश्चित शर्त के अनुसार काम करके उत्पादन का कुछ भाग प्राप्त करते थे।' व्यवहारभाष्य में एक ऐसे कुटुम्बी का उल्लेख है जो कृषिकार्य में दूसरे कृषकों को सहायता लेता था और उनके श्रम से उत्पन्न धान्य का निश्चित अंश भी उन्हें देता था। १. सोमदेवसूरि--यशस्तिलकचम्पू पृ० १० २. गामनी चंड जातक, जातक कथा, आनन्द कौसल्यायन, ३/२५७ ३. निशीथचूणि भाग ३। गाथा ३४९९ ४. बृहत्कल्पभाष्य भाग २/ गाथा २८८ ५. पिंडनियुक्ति गाथा ३८४ ६. उत्तराध्ययनचुणि, गाथा ११८ ७. उज्जतो कम्मे उचित भत्तिप्पदाणं अकालहीणं च परिवड्डी। व्यवहारभाष्य ४/८३ ८. प्रश्नव्याकरण २/१३ ९. व्यवहारभाष्य ६/१६३, १६४
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy