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________________ "१२ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन • अर्थोपार्जन के साधन किसी भी देश की आर्थिक समृद्धि में वहाँ की भोगौलिक परिस्थितियों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । सौभाग्य से यहाँ की जलवायु भूमि, वन, खनिज, नदियों आदि ने देश को समृद्ध बनाया है । उक्त साधनों के अतिरिक्त जिन साधनों के सहयोग से धन का उत्पादन होता है उन्हें उत्पादन के साधन कहा जाता है । आधुनिक अर्थशास्त्री एलफर्ड मार्शल ने धनोपार्जन के साधनों का वर्गीकरण भूमि, श्रम, पूँजी और प्रबन्ध के रूप में किया है । उनके अनुसार भूमि के बिना कुछ भी उत्पादन सम्भव नहीं है अतः उत्पत्ति का प्रथम और आधारभूत साधन भूमि माना गया है चूँकि श्रम के योग के बिना भूमि से उत्पत्ति सम्भव नहीं है इसलिये श्रम को उत्पत्ति का दूसरा साधन माना जाता है । चूँकि भूमि और श्रम के होते हुये भी पूँजी के बिना समुचित उत्पादन सम्भव नहीं है अतः पूँजी को उत्पत्ति का तीसरा साधन माना गया है । भूमि, श्रम और पूँजी के उपलब्ध होने पर भी यह आवश्यक नहीं है कि उत्पादन व्यवस्थित हो । इन सभी साधनों को उत्पादन कार्य में लगाने के लिये तथा उनमें समन्वय स्थापित करने के लिये उचित प्रबन्ध की आवश्यकता पड़ती है इस कारण प्रबन्ध को उत्पत्ति का चौथा साधन माना गया है । ' जैन ग्रंथों में उत्पत्ति के साधनों का ऐसा वर्गीकरण नहीं मिलता है, परन्तु अध्ययन की दृष्टि से मैंने उपलब्ध सामग्री को उपरिलिखित वर्गीकरण में व्यवस्थित किया है । भूमि भूमि अर्थ उत्पत्ति का महत्त्वपूर्ण साधन है । मौर्यकाल में अधिक उत्पादन देने वाली, अर्थ प्राप्ति में सहायक, सुख समृद्धि की दायक रत्नगर्भा भूमि को ही राज्य का मुख्य आधार माना गया था । सोमदेवसूरि ने भी अन्न, जल, सुवर्ण, चांदी, पशु-पक्षी देने वाली को पृथ्वी कहा है । आधुनिक परिभाषा में भूमि का अर्थ बड़ा व्यापक है, उसमें मात्र कृषिभूमि का ही नहीं वरन् अर्थोत्पत्ति के स्रोत, भूमि से प्राप्त होने वाले, सभी १. मार्शल एलफर्ड, प्रिन्सिपल्स आफ इकोनामिक्स, खण्ड ४ / पृ० ११५. २. कौटिलीय अर्थशास्त्र, १५ / १८०. ३. " धान्यहिरण्यपशु कुप्यवृष्टिफलदा च पृथिवी”, सोमदेव, नीतिवाक्यामृत, ५४
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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