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________________ द्वितीय अध्याय : ९ विनय से उत्पन्न बुद्धि से मनुष्य अर्थशास्त्र तथा अन्य लौकिक शास्त्रों में दक्ष हो जाते हैं ।' दशवैकालिकचूर्ण में चाणक्य द्वारा निर्दिष्ट अर्थ उपार्जन के विविध प्रकारों का उल्लेख मिलता है ।" जैनग्रंथों में 'अत्थसत्थ' के पुनपुनः उल्लेख से प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में अर्थशास्त्र नामक कोई ग्रन्थ अवश्य रहा होगा । सम्भवतः यह कौटिल्य का अर्थशास्त्र हो सकता है । जैन पौराणिक परम्परा में प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव को अर्थव्यवस्था का संस्थापक माना गया है, जिन्होंने अपने पुत्र भरत चक्रवर्ती के लिये अर्थशास्त्र का निर्माण किया था । हरिभद्रसूरि ने अपने धूर्ताख्यान में धूर्तों की नायिका खण्डापना को अर्थशास्त्र का निर्माता बताया है । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार अर्थशास्त्र का ज्ञाता था ।" वसुदेव हिण्डी से पता चलता है कि अगडदत्त कौशाम्बीवासी आचार्य दढप्पहारि के पास अर्थशास्त्र सीखने गया था । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति से यह सूचना प्राप्त होती है कि भरत का सेनापति सुषेण अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र में चतुर था। जैन परम्परा में अर्थ का महत्त्व यद्यपि जैनों का कठोर अपरिग्रह का आदर्श धन के महत्त्व का विरोधी है। उत्तराध्ययन में यह भी कहा गया है कि धन से मोक्ष नहीं मिलता परन्तु दूसरी ओर जैन परम्परा के अनुसार प्रत्येक तीर्थङ्कर के जन्म पर उनकी माता द्वारा देखे गये १४ स्वप्नों में एक स्वप्न लक्ष्मी का होता है । धनदेवी लक्ष्मी का स्वप्न, कुल में धन की वृद्धि का सूचक माना गया है । " १. निमित्ते, अत्थसत्थे अ । नंदीसूत्र, गा० ७४. २. दशवैकालिकचूर्णि, पृ० १०२. ३. भरतायार्थशास्त्रं च भरतं च संसंग्रहम् । अध्यायैरतिविस्तीर्णैः स्फुटीकृत्य जगौ गुरुः ॥ आदिपुराण १६ / ११९. ४. अत्थसत्यणिमाया - हरिभद्र सूरि, धूर्ताख्यान, पृ० २४. ५. ज्ञाताघकर्मकथांम, १ /१६. ६. ईस - अत्थसत्थ रहचरियसिक्खाकुसले | आयरिउ - संघदासगणि वसुदेवहिण्डो भाग १, पृ० ३६. ७. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, १/५. .८. 'अभिसेयदाम', कल्पसूत्र, सूत्र ५.
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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