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________________ १८८ : प्राचीन जैन साहित्य में वणित आर्थिक जीवन था।' विपाकसूत्र में नगरों में तिहानियों और चौमहनियों पर ऐसी दुकानों का उल्लेख है जहाँ पशुओं का पका मांस बेचा जाता था। भोजन के साथ तरह-तरह के पेय पदार्थों का भी उपयोग किया जाता था। यद्यपि जैन परम्परा में मद्यपान का निषेध था पर जन साधारण में मद्यपान का प्रचलन था । वसुदेवहिण्डी से पता चलता है कि विकास की वस्तु 'मद्य' थी, जिसका पर्वो और विशेष अवसरों पर पान किया जाता था। सखंडी आदि विशेष भोजों पर मद्यपान एक साधारण बात थी इसलिये जैन साधुओं को सखंडी में जाना निषिद्ध था ।५ विपाकसूत्र में पुरुषों के अतिरिक्त विशेष अवसरों पर स्त्रियों के भी मदिरापान के उल्लेख आये हैं।६ जैन परम्परा में सदाचारी व्यक्ति से यह आशा की जाती थी कि वह इस व्यसन से दूर रहे। ___भोजन के उपरान्त मुख को सुवासित करने के उल्लेख भी मिलते हैं । निशीथचर्णि से पता चलता है कि पान के पत्तों में जायफल, कक्कोल, कपूर, लवंग, सुपाड़ी आदि डालकर खाये जाते थे। इस प्रकार ज्ञात होता है कि भोजन में अन्न, मांस, शाक, फल, दुग्ध तथा उससे बनी वस्तुओं, मिष्टान्न, मधु, मद्य आदि का सेवन किया जाता था। जैन ग्रन्थों में उच्च तथा निम्न वर्ग की जीवन-शैली में समानता दिखाई नहीं पड़ती। समाज का एक वर्ग बहुत निर्धन था जो कष्टपूर्ण जीवन बिता रहा था उन्हें भरपेट भोजन भी सुलभ नहीं था।' १. आचारांग, २।१।९।५१ २. विपाकसूत्र, ३।२१, ८।१९ ३. आचारांग, २।१८।९३ ४. संघदासगणि, वसुदेवहिण्डी, १/४६ ५. आचारांग, २/१।३।१५ ६. विपाक, २।२६ ७. जाइफलं कक्कोलं कप्पूरं लवंगं पूगफलं ए ते पंच दव्वा तम्बोलपत्तसाहिया खायइ, निशीथचूणि, भाग ३ गाथा ३९९३ ८. आचारांग, २।१।४।२४ ; प्रश्नव्याकरण १०।६ ९. विपाकसूत्र, ११४; प्रश्नव्याकरण, ३।९
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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