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________________ अष्टम अध्याय : १८७ . लाई ।' सम्पन्न लोग सुगन्धित कमलशालि का आहार करते थे । प्रतीत होता है कि कमलशालि महँगा तथा कोद्रव, यव और रालक की तुलना में सस्ता धान्य रहा होगा । ओदन के साथ मूग, मांष, चना, अरहर, कुलत्थ, मटर दालों से निर्मित " सूव" (सूप) बनाये जाते थे ।३ निशीथचूर्णि से ज्ञात होता है कि भोजन में सुपाच्य और पौष्टिक तरकारियों की प्रधानता थी । दाल और तरकारियों को घी से स्निग्ध करके स्वादिष्ट बनाने के लिये हींग और जीरे का छौंका दिया जाता था । " गोधन सम्पन्न समाज होने के कारण दुग्ध, दधि, घृत, तक्र, नवनीत आदि का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जाता था । चूर्णियों से ज्ञात होता है कि चीनी मिश्रित दूध स्वास्थ्यवर्धक माना जाता था । नये चावलों और दूध से खीर बनाई जाती थी और मधु डालकर उसे और पौष्टिक बनाया जाता था। भोजन के साथ तरह-तरह के मिष्टान्नों का भी प्रचलन था ।° भोजन में फलों का भी बड़ा महत्त्व था । आचारांग में आम, केला, बिल्व, नारियल, ताड़, श्रीपर्णी, दाडिम, कसेरु, सिंघाड़ा आदि फलों का उल्लेख हुआ है ।" गन्ने को छील कर गंडेरियां बना कर इलायची और कर्पूर से सुगन्धित करके खाया जाता था । १२ यद्यपि धार्मिक दृष्टि से जैन समाज में मांसाहार वर्जित था, परन्तु समाज में विरल रूप में तथा विशेष परिस्थितियों में यथा रोग से पीड़ित होने पर या दुर्भिक्ष से आक्रान्त होने पर मांस ग्रहण किया जा सकता १. निशीथचूर्णि भाग ३, गाथा ४४९५ २. उपासकदशांग, १/२९ : निशीथचूर्णि भाग ३, गाथा ४६५६ ३. वही, १/२९ ४. निशीथचूर्णि भाग ३, गाथा ४८३७ ५. निशीथचूर्णि भाग २ गाथा १६५५ ; बृहत्कल्पभाष्य भाग २ गाथा १६१३ ६. निशीथचूर्णि, भाग २, गाथा ११९९ ७. वही, भाग १ गाथा ३०२५ ८. दशवैका लिकचूणि, पृ० ३५६ ९. आवश्यकचूर्णि भाग १, पृ० २८८ १०. प्रश्नव्याकरण, १०1३; दशवैकालिक ५।७२; उपासकदशांग, १।२९ ११. आचारांग, २।१।४।४७-४८ १२. उत्तराध्ययनचूर्ण, पृ० ११८
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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