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________________ सप्तम अध्याय : १७७ चर्णि के एक प्रसंग से ज्ञात होता है कि सोपारक नगर के राजा द्वारा व्यापारियों पर लगाये गये कर को न देने से क्रद्ध राजा ने उन्हें अग्नि-प्रवेश का दण्ड दिया था।' विपाकसूत्र में वर्णित विजयवर्धमान खेट का एकादि नामक राष्ट्रकूट ५०० ग्रामों से बड़ी कठोरता से कर ग्रहण करता था। जातक कथाओं में भी प्रजा को कष्ट देकर कर-ग्रहण करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं जैसे ब्रह्मदत्त के शासनकाल में पांचालदेश के कर्मचारी बडी निर्दयता से कर ग्रहण करते थे।३ राज्याधिकारी उत्कोच लेने के लिये कभी-कभी प्रजा को पीड़ित करते थे। एक पान विक्रेता का एक राजकर्मचारी से झगड़ा हो गया अन्ततः उसे राज्याधिकारी को वस्त्रयुगल देकर समझौता करना पड़ा। कर ग्रहण करने वाले अधिकारो झूठे और लोभी भी होते थे।५ कुछ राज्याधिकारियों द्वारा कर-धन की चोरी का उल्लेख प्राप्त होता है। निशोथर्णि में वर्णित एक राजा ने राज्य के कोष्ठागार से तीस अन्न के बर्तनों का स्वयं उपभोग करने वाले अधिकारियों को दण्डित किया था। राज्य के कोश में कर जमा करने का समय निर्धारित होता था किन्तु विशेष परिस्थितियों में करदाताओं को दो-तीन मास की छूट भी प्रदान की जाती थी। किन्तु छूट की अवधि के बाद भी कर न देने पर उन्हें दण्डित किया जाता था। व्यवहारभाष्य में एक ऐसे व्यक्ति का उल्लेख है जिसको राजा के अनुग्रह से दो-तीन वर्ष के लिए कर से छूट मिल गई थी। अतः वह इस अवधि में न तो राज्यकर्मचारियों को प्रसन्न करने के १. रुवगकरं मग्गिज्जति ते य 'अकरे' त्ति पुत्ताणुपुत्तिओ करो भविस्सई ण देमो। जति ण देह, तो अग्गिपवेसं करेह-निशीथचूणि भाग ४, गाथा ५१५६; बृहत्कल्पभाष्य भाग ३, गाथा २५०६-७ २. विपाकसूत्र, १/४९ ३. गन्डतिन्दुजातक आनन्द कौसल्यायन जातककथा ५/१९२ ४. निशीथचूणि भाग ४, गा था ६४१३ ५. प्रश्नव्याकरण २/३ ६. पुरेसु अहिवरण्णो कोट्ठागारा तेहितो पत्तेयं धण्णस्स तीसं तीसं कुंभा गहिया-निशीथचूणि भाग ४, गाथा ६४०८ ७. निशीथचूणि भाग ४, गाथा ६२९६
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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