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________________ सप्तम अध्याय : १६७ ग्रामकर-बृहत्कल्पभाष्य और चूणियों में विवरण है कि ग्रामों में १८ प्रकार के कर लगते हैं।' डॉ० जगदीशचन्द्र जैन ने अपनी पुस्तक 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज' में १८ प्रकार के करों के नाम दिये हैं :-२ (१) गोकर (गाय पर लगने वाला कर ), (२) महिषकर ( भैंस पर लगने वाला कर ), (३) उष्टकर (ऊँट पर लगने वाला कर ), (४) पशुकर (पशुओं पर लगने वाला कर ), (५) अजकर (बकरे पर लगने वाला कर ), (६) तृणकर (घास के पत्तों पर लगने वाला कर ), (७) भुसकर (धान्य के भूसे पर लगने वाला कर ) (८) पलालकर (चावल के भूसे पर लगने वाला कर ) (९) अङ्गारकर ( कोयले पर लगने वाला कर ) (१०) काष्ठकर (लकड़ो पर लगने वाला कर ), (११) लांगूलकर (पूछ पर लगने वाला कर ), (१२) देहलीकर (घरों पर लगने वाला कर ), (१३) जंघाकर (चरागाह कर), (१४) बलिवर्दकर (बैल पर लगने वाला कर ), (१५) घटकर (मिट्टी के बर्तन पर लगने वाला कर), (१६) कर्मकर (श्रमिकों द्वारा दी गई बेगार), (१७) बुल्लकर (सामूहिक भोज पर लगने वाला कर ) और (१८) औतितकर (विज्ञानकला के व्यापार पर कर )। ये सभी कर कृषि और पशु सम्बन्धी थे। आवश्यकणि में भी क्षेत्रकर और पशु-कर का उल्लेख हुआ है।' इन करों के उल्लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि कृषक आय का कोई भी स्रोत कर मुक्त नहीं था। कौटिलीय अर्थशास्त्र में ग्रामों से प्राप्त इस प्रकार की आय को 'पिण्डकर' १. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाथा १०८८; उत्तराध्ययनचूणि, २/९७; निशीथचूणि भाग ३, गाथा ४१२८ २. जैन, जगदीश चन्द्र, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० ११२ १. आवश्यकचूणि, भाग २, पृ० ४
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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