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________________ प्रथम अध्याय : ३ अंगप्रविष्ट साहित्यमें निम्न ११ ग्रन्थ हैं-१ आचारांग, २ सूत्रकृतांग, ३ स्थानांग, ४ समवायांग, ५ भगवतीसूत्र, ६ ज्ञाताधर्मकथा, ७ उपासकदशा, ८ अन्तकृतदशा, ९ अनुत्तरौपपातिकदशा, १० प्रश्नव्याकरण और ११ विपाकदशा, अंगबाह्य आगम साहित्य को पांच भागों-(१) उपांगसूत्र, (२) मूलसूत्र, (३) छेदसूत्र, (४) चूलिकासूत्र और (५) प्रकीर्णक में विभक्त किया गया है। उपांगसूत्र अंगों के समान ये भी संख्या में द्वादश हैं (१) ओपपातिक, (२) राजप्रश्नोय, (३) जीवाजीवाभिगम, (४) प्रज्ञापना, (५) सूर्यप्रज्ञप्ति, (६) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, (७) चन्द्रप्रज्ञप्ति, (८) निरयावलिका, (९) कल्पावतंसिका, (१०) पुष्पचूलिका, (११) पुष्पिका, (१२) वृष्णिदशा। द्वादश उपांगों का प्राचीन ग्रन्थों में कहीं एक साथ उल्लेख नहीं 'मिलता। मूलसूत्र ये संख्या में चार हैं(१) उत्तराध्ययन, (२) दशवैकालिक, (३) आवश्यक और (४) पिंडनियुक्ति । छेदसूत्र ये संख्या में छः हैं(१) दशाश्रुतस्कंध, (२) बृहत्कल्प, (३) पंचकल्प अथवा जीतकल्प, (४) निशीथ, (५) महानिशीथ और (६) व्यवहार । चूलिकासूत्र ये संख्या में दो हैं(१) नन्दीसूत्र और (२) अनुयोगद्वार । १. ओववाइय रायपसेणइय जिवाभिगम पन्नवणा सूरियपण्णति चन्दपण्णति जंबुदी पपण्णति निरयावलिओ कप्पवउसियाओ पुप्फ चूलिआओ प्रप्फयाओ वणिहदसाओ -दोशी,बेचरदास : जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १ पृ० २७. २. उत्तरउन्नयण दसवेयलिय आवस्सय पिंडनिज्जुति १-वही, ३. दसासुयखंध कप्प, पंचकप्प, निसीह, महानिसीह, ववहार । -वही. ४. नन्दी अनुयोगद्वार, वही.
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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