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________________ : १४२ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन की मुद्रायें अपने स्वयं के प्रदेश में उत्तरापथक, दक्षिणापथक या पाटलिपुत्रक आदि नाम से नहीं पहचानी जा सकतीं । यह नाम अन्यत्र प्रचलित मुद्राओं के ही हो सकते हैं ।" निशीथचूर्ण में वस्त्रों के मूल्य का उल्लेख करते हुये कहा गया है कि वस्त्र का न्यूनतम मूल्य १८ रुवग और अधिकतम मूल्य शतसहस्र रुवग है । इसी प्रकार बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार एक ग्राहक एक गंधी- विक्रेता के पास रुवग लेकर मदिरा लेने गया था । ३ जिनदासगण के अनुसार सोपारक का राजा व्यापारियों के नैगमों से एक रुवग प्रति परिवार 'कर' ग्रहण करता था । उत्तराध्ययनचूर्णि में उल्लेख है कि एक आभीर स्त्री ने रुवग देकर एक वणिक् से रुई खरीदी थी । " दशा तस्कन्ध से ज्ञात होता है कि दैनिक व्यवहार और क्रय-विक्रयार्थं 'माषार्ध' और माष-रूप्य का प्रयोग किया जाता था । बृहत्कल्पभाष्य में भिल्लमाल में प्रचलित चाँदी के एक अन्य सिक्के 'द्रम्म' का उल्लेख है । पिंडनियुक्ति में भी द्रम्म का उल्लेख हुआ है । ' मेगस्थनीज ने भी 'द्रम' संज्ञक चाँदी के यूनानी सिक्के के प्रचलन के विषय में लिखा है । निशीथचूर्णि से ज्ञात होता है कि दक्षिणापथ में चाँदी की 'काकिणी' भी प्रचलित थी । १० ताम्र- सिक्के उत्खननों में ताँबे के सिक्के प्राप्त हुए हैं । प्रतिदिन के व्यवहार में ताँबे के सिक्कों का प्रयोग होता था । ताँबे के सिक्कों में पण, माष और काकिणी का उल्लेख हुआ है । मनुस्मृति में ताम्र- कार्षापण को पण कहा : १. देखिये - निशीथचूर्णि, एक अध्ययन, पृ० ७६ २. निशीथचूर्ण २ / ९५७; बृहत्कल्पभाष्य ४ / ३८९० ३. बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा १९६५ ४. निशीथचूर्णि भाग ४, गाथा ५१५६ ५. उत्तराध्ययनचूर्णि ४ / ११३ ६. दशाश्रुतस्कन्ध ६ / १८९ ७. बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा १९६९ ८. पिंडनियुक्ति गाथा ८७ ९. पुरी बैजनाथ - इण्डिया ऐज डिस्क्राइब्ड बाई अर्ली ग्रीक राइटसं, पृ० ६४ १०. 'जहा दक्षिणाव हे कागणीरुप्पमयं ' निशीथचूर्ण, भाग ३, गाथा ३०७०
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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