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________________ १३८ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन स्वर्ण-सिक्के स्वर्ण सिक्कों में निष्क, सुवर्ण, दीनार, केवडिक और सुवर्णमाष के उल्लेख प्राप्त होते हैं । निष्क एक स्वर्ण धातु का सिक्का था। पाणिनि ने १०० निष्क के धारक को 'नष्कशतिक' ओर १००० निष्क के धारक को नैष्कसहस्रिकी संज्ञा दो है। बृहत्कल्पभाष्य में निष्क का उल्लेख हुआ है पर लगता है कि शास्त्रकार ने प्रसंगवश ही इसका उल्लेख किया है क्योंकि बृहत्कल्पभाष्य के रचनाकाल में ये सिक्के प्रचलित नहीं थे। बौद्ध ग्रन्थों में भी कई स्थानों पर निष्क का उल्लेख हुआ है । भूरिजातक के अनुसार एक शिकारी ने मणि प्राप्त करने हेतु एक ब्राह्मण को १०० निष्क दिये थे। निशीथचणि के अनुसार सोने के ‘णाणक' ( सिक्के ) को पूर्व देश में 'दीनार' कहा जाता था। आधुनिक विद्वानों के विचार में रोम के 'डिनेरियस' के नाम पर स्वर्ण सिक्कों को दीनार कहा जाता था, इसका भार भी रोमन पद्धति के अनुसार १२४ ग्रेन था। कल्पसूत्र के अनुसार महावीर की माता को आने वाले जिन १४ स्वप्नों की चर्चा है उनमें एक स्वप्न का दीनारों की माला धारण किये हुये बताया गया है।" कल्पसूत्र का रचनाकाल लगभग प्रथम शताब्दी माना जाता है, अतः उस युग तक भारतीय निश्चय ही 'दीनार' से परिचित हो गये थे । निशीथचर्णि से ज्ञात होता है कि मयरॉक नामक राजा ने दीनार सिक्को पर अपने चित्र अंकित कराकर उसे प्रवर्तित किया था। वसुदेवहिण्डी से ज्ञात होता है कि एक धर्त साधु के वेष में सार्थवाह के पास गया और कहने लगा यह देखो मुझे भिक्षा में ५०० दीनार प्राप्त हुई हैं। मैं इनको सुरक्षित रखकर तुम्हारे साथ जंगल पार करना चाहता १. पाणिनि-अष्टाध्यायी ५/१/१९ २. भूरिजातक-आनन्द कौसल्यायन, जातककथा ६/२१४ ३. 'पीय त्ति सुवन्नं, जहा पुव्वदेसे दोणारो' निशीथचूणि, भाग ३, गाथा ३०७० ४. राखालदास बनर्जी-प्राचीन मुद्रायें, पृ० १५७ ५. 'उरत्थदीणारमलियाविरइएणं' कल्पसूत्र, सूत्र ३७ ६. 'मयूरंको णाम राया । तेण मयूरंकेण अंकिता दिणारा' निशीथचूर्णि, भाग ३, गाथा ४३१६
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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