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________________ पंचम अध्याय : १३३ जाता था । निशोथचूर्णि में उन्हें "यानपट्ट" कहा गया है । आचारांग में नदियों में चलने वाली तीन प्रकार की नौकाओं - ऊर्ध्वगामिनी, अधोगामिनी और तिर्यग्गामिनी का उल्लेख है । प्रवाह के प्रतिकूल जाने वाली नौका को ऊर्ध्वगामिनी", प्रवाह के अनुकूल जाने वाली को ratगामिनी और एक किनारे से दूसरे किनारे तिरछे जाने वाली को तिर्यग्गामिनी कहा जाता था । जलपोत लकड़ी के तख्तों से निर्मित होते थे । इनमें पतवार, रज्जु और डंडे लगे रहते थे । समुद्र में चलने वाले जलपोतों में कपड़े के पाल लगे रहते थे जिनकी सहायता से हवा कम होने पर भी जलपोत तीव्र गति से चलता था । " जलपोतों को रोकने के लिये लंगरों का प्रयोग किया जाता था । इन जलपोतों में एक ऐसा जलयंत्र लगा होता था, जिसको पैर से दबाने से यान दायें-बायें मुड़ सकता था । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि जलयानों में विविध प्रयोजनों के लिये स्थान नियत होते थे यथा यान के पिछले भाग में नियामक का स्थान, अग्रभाग में देवता की मूर्ति, मध्यभाग में काम करने वाले गर्भजों और पार्श्व भाग में नाव खेने वाले कुक्षिधरों का स्थान होता था । " छेद हो जाता और उसमें पानी रिसने को मिट्टी के साथ कूटकर वस्त्र में विशाल नौकाओं के अतिरिक्त जल निशोथचूर्णि से ज्ञात होता है कि चलाते समय यदि कभी नाव में लगता तो मूंज और पेड़ की छाल लपेट कर छेद भरा जाता था । संतरण के लिये अन्य साधन भी १. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ५, गाथा ५२२३ २. निशीथचूर्णि भाग ३, गाथा ३१८४, ३. आचारांग २ / ३ /१/११८ ४. वही २/३/१/११९ ५. औपपातिकसूत्र ३२ ६. वही ७. 'बंसो वेणू तस्स अवट्ठभेण पादेहिं पेरिता णावा गच्छति' निशीथचूर्णि भाग ४, गाथा ६०१५ ८. ज्ञाताधर्मकथांग ८/६९, १७/११ ९. निशीथचूर्णि भाग ४, गाथा ६०१७
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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