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________________ १२८ : प्राचीन जैन साहित्य में वणित आर्थिक जीवन उसे शुल्क-मुक्त कर दिया।' इससे संकेत मिलता है कि शकट रखने पर राज्य को शुल्क देना पड़ता था। रथ, तिनिश वृक्ष की लकड़ी से निर्मित होते थे। राजाओं के रथ इतने सुन्दर होते थे कि इनकी गणना रत्नों में की जाती थी। रथों में विभिन्न प्रकार के मणिरत्न जड़े जाते थे। रथ को घोड़े और बैल खींचते थे। घोड़ों और बैलों को सुन्दर आभूषणों से सज्जित किया जाता था । युद्ध में भी रथों का उपयोग होता था। दूसरी सुखद सवारी शिविका थी जिसे चार, आठ या सोलह व्यक्ति मिलकर उठाते थे। इसमें सुखद आसन-शयन की व्यवस्था रहती थी। प्रायः राजा, श्रेष्ठि, सार्थवाह और धनाढ्य लोग ही इसका प्रयोग करते थे। ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि मेघकुमार की दोक्षा के समय सौ पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका मंगाई गई थी। स्पष्ट है कि यह बहुत बड़ी और भव्य शिविका रही होगी। भार वहन करने वाली गाड़ी को शकट या सग्गड़ कहा जाता था इनमें बैल जोते जाते थे। बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि आभीर शकटों में घो के घड़े रखकर नगरों में विक्रयार्थ जाते थे।५ बैलों को तेज चलाने के लिये चाबुक का प्रयोग किया जाता था। __मार्गरहित प्रदेशों अथवा घाटरहित नदियों में आवागमन हेतु हाथियों का विशेष उपयोग किया जाता था । मुख्यतया राजा की सवारी के लिए और युद्ध हेतु हाथियों का प्रयोग किया जाता था । हाथियों को आभूषण, घण्टियाँ और झूले पहनाकर ध्वजा, पताका और अस्त्रों-शस्त्रों से मण्डित किया जाता था। राजा श्रेणिक और कुणिक हाथी पर सवार होकर महावीर का दर्शन, नगर-विहार और वन-विहार के लिये जाया करते थे। परिवहन के लिये घोड़ों का भी बहुविध उपयोग था, घोड़ों को १. व्यवहारभाष्य, भाग ६ गाथा २२३ २. औपपातिक सत्र ४९ ३. ज्ञाताधर्मकथांग १/१२९ ४. बृहत्कल्पभाष्य भाग १ गाथा ५०० ५. बृहत्कल्पभाष्य, भाग १ गाथा ३६० ६. सूत्रकृतांग १/२/३/१४७ ७. विपाक २/४, औपपातिक सूत्र ४२ ८. ज्ञाताधर्मकथांग १/६३, औपपातिक सूत्र ४
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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