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________________ ११६ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन मार्ग में पुलिंदों ने उसका सार्थ लूट लिया। जिस सार्थ में मूल्यवान वस्तुएँ कुकुम, अगरु, चन्दन, चोय, शंख, लवण, कस्तूरी, हींग आदि वस्तुएं होती थीं, उसके लूटे जाने को आशंका बनी रहती थी। यात्रियों की सुरक्षा हेतु राज्य भी सतर्क रहता था। बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि जंगलों में यात्रियों के सुरक्षार्थ रक्षक पुरुष, गौल्मिक और स्थानपाल नियुक्त किये जाते थे। कल्पसूत्र में उल्लेख है कि राज्य की ओर से नियुक्त सुरक्षाकर्मी नयसार, सहायक पुरुष, रथ और बैलों के साथ पाथेय लेकर गहन वन में यात्रियों की सहायता के लिये गया था। सार्थ का प्रस्थान सार्थ का प्रस्थान करना व्यापारिक क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण घटना होती थी । ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार यात्रा आरम्भ करने से पूर्व अनेक प्रकार की तैयारियां की जाती थीं। यात्रा के लिये खाद्य-सामग्री ली जाती थी, सेवकों को तैयार किया जाता था। शुभ नक्षत्र और तिथि को देखकर सार्थ-प्रस्थान की घोषणा की जाती थी। यात्रा से पूर्व अपने सगे सम्बन्धियों और श्रेष्ठ जनों को विपुल मात्रा में अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य चार प्रकार का भोजन कराया जाता था। कुछ धामिक विचारों वाले सार्थवाह अपने सहयात्रियों को अनेक प्रकार की सुविधायें देते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में चम्पा नगरी के धन्ना सार्थवाह का उल्लेख १. आवश्यकचूणि, भाग २ पृ० १५५ २. "कुंकुम अगुरुं पत्तं चोयं कत्थूरिया य हिंगु च । संखग-लोणभरितेण न तेण सत्येण गन्तव्वं" बृहत्कल्पभाष्य भाग ३ गाथा ३०७४ ३. रक्खिज्जइ वा पंथो, जइ तं भित्तूण जणवयमइंति । बृहत्कल्पभाष्य भाग ३ गाथा २७७५, ३०८९ ४. कल्पसूत्र, सूत्र ४ ५. ज्ञाताधर्मकथांग १५/११ ६. "धण्णे सत्थवाहे अहिच्छतं गरि वाणिज्जाए गमित्तए, तस्स णं धणे सत्थवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ, अणुवाहणस्स उवाहणाओ दलयइ, अकुंडियस्स कुंडियंदलयइ, अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, अपक्खेवगस्स पक्खेवं दलयइ, अंतरा वि य से पडियस्स वा भग्गलुग्गस्स साहेज्जं दलयइ सुहंसुहेण य णं. अहिच्छतं संपावेइ" वही १५/६
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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