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________________ पंचम अध्याय : ११५ थे। जब लूटपाट मचाने वाली जंगली जातियों का आक्रमण हो जाता था तो ये आयुधधारी सुरक्षादल युद्ध भी करते थे। कुवलयमालाकहा से ज्ञात होता है कि यात्री स्वयं भी पहरा देते थे और सार्थ की सुरक्षा करते थे। एक बार वैश्रमणदत्त सार्थवाह का सार्थ एक ऐसे घने जंगल में पहुँचा जहाँ एक भील पल्ली (वसति) थी। वहाँ एक बड़े जलाशय के पास सार्थ का पड़ाव डाल दिया गया। मूल्यवान वस्तुओं को घेरे में रखा गया, कनातें खींचकर एक निवेश सा बना लिया गया, तलवारें निकाल ली गईं और धनुष पर वाण चढ़ा लिये गये और इस प्रकार पहरा देते हयेलोग सारी रात सार्थ की सुरक्षा करते रहे ।३ बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि जंगली जानवरों और चोर-डाकुओं से सुरक्षा के लिये सार्थ के लोग रात को अपने चतुर्दिक घेरा निर्मित कर तथा उसे चारों ओर से सूखे काँटों आदि की बाड़ों से सुरक्षित कर लेते थे, साथ ही आग भी जला लेते थे। वे चोरों को भयभीत करने के लिये अपनी निडरता और वीरता की डीगें मारते हुए रात भर जागते रहते थे। लेकिन जब सचमुच ही चोर या डाकू आ जाते तो सार्थ छिन्न-भिन्न हो जाता था। जातकग्रन्थों में भी सार्थों द्वारा सुरक्षा दल साथ लेकर यात्रा करने के उल्लेख उपलब्ध हैं। सार्थ के लोग स्वयं भी क्रम से पहरा देते थे।५ सुरक्षा दलों के अभाव में सार्थ प्रायः लूट लिये जाते थे। वसुदेव हिण्डी से ज्ञात होता है कि व्यापारी चारुदत्त रुई खरीदकर सार्थ के साथ उत्कल देश गया था वहाँ से जब वह ताम्रलिप्ति जा रहा था तो मार्ग में सींग बजाते हुए चोरों का समूह आ टकराया और सार्थ अस्त-व्यस्त हो गया तथा चोरों ने सार्थ को लूट लिया ।६ आवश्यकचूर्णि में भी उल्लेख है कि उज्जयिनी नगरी का धनवसु सार्थवाह चम्पा नगरी जा रहा था १. हरिभद्रसूरि-समराइच्चकहा ६/५११, ५१२ २. वही ७/६५६ ३. उद्योतनसरि-कुवलयमालाकहा, पृष्ठ १३५ ४. सावय अण्णट्ठकडे, अट्ठा सुक्खे सय जोइ जतणाए । तेणे वयणचडगरं, तत्तो व अवाउडा होति । बृहत्कल्पभाष्य भाग ३ गाथा ३१०३ ५. अपण्ण जातक, आनन्द कौसल्यायन, जातककथा ४/१३२ ६. संघदासगणि-वसुदेवहिण्डो, भाग १ पृ० १४५
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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