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________________ चतुर्थ अध्याय : ९९ कुकुम, कुसुम्भ और किशुक के फूलों से रंग बनाने का वर्णन है ।' कृमिराग से रक्त वर्ण तैयार किया जाता था। १५-कुटीर-उद्योग इन उद्योगों के अतिरिक्त और भी कुटीर उद्योग प्रचलित थे। डोम, (चण्डाल) कुहण आदि जंगली जाति के लोग सूप, टोकरियां, रस्से आदि बनाते थे । जंगली जानवरों को पकड़ने के लिये मुज, काष्ठ, वेत्र, सूत्र आदि से रस्से बनाये जाते थे। ऊन, मुज, घास, ऊंट के बाल, सन आदि के रोम से साधुओं के लिये रजोहरण बनाये जाते थे। ताड़, मुज और पलाश के पत्रों से हाथ के पंखे बनाये जाते थे। इनके अतिरिक्त विविध खिलौनों का निर्माण किया जाता था । लकड़ी को कांट-छांटकर, चिकनाकर, चित्रकारी से, मिट्टी अथवा चूने से, धातु आदि को पिघलाकर सांचे में डालकर, कौड़ियों आदि से तरह-तरह के खिलौने बनाये जाते थे। काष्ठकर्म और पुस्तकर्म से बनायी गई प्रतिमायें जघन्य, हाथीदांत से निर्मित मध्यम और मणियों से निर्मित पुत्तलिकाएं उत्तम मानी जाती थीं।६ उपयुक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि आगमों के रचना काल में उद्योग-धन्धे विकसित थे । कृषि और उद्योग में अपेक्षित समन्वय पाया जाता था। १. कौटिलीय अर्थशास्त्र, २।१७।३५ २. प्रश्नव्याकरण, १११।१२ ३. वही १।१२० ४. बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, गाथा ३६७४ ५. अनुयोगद्वार, ८।११ “६. बृहत्कल्पभाष्य भाग ३, गाथा २४६९
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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