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________________ ८-३३ विषय-सूची अध्याय : १ प्राचीन जैन साहित्य का सर्वेक्षण १-७ अंगसूत्र २, उपांगसूत्र ३, मूलसूत्र ३, छेदसूत्र ३, चूलिकासूत्र ३, प्रकीर्णक ४, आगमों का रचनाकाल ४, आगमों का व्याख्या साहित्य ५, पुराण तथा कथा साहित्य ६। अध्याय: २ अर्थ का महत्त्व और उत्पादन के साधन अर्थशास्त्र की परिभाषा ८, जैन परमपरा में अर्थशास्त्र के उल्लेख ८, जैन परपरा में अर्थ का महत्त्व ९, अर्थोपार्जन के साधन १२। (१) भूमि १३, वनसम्पदा १३, खनिज सम्पदा १४, जल सम्पदा १४, उत्पादन में भूमि का महत्त्व १५, भूमि का स्वामित्व १६, राज्य का स्वामित्व १६, व्यक्तिगत स्वामित्व १७, सामूहिक स्वामित्व १८ । (२) श्रम १९, उत्पादन में श्रम का महत्त्व १९, खेतिहर श्रमिक २१, दास-दासी २१, शिल्पी २३, श्रमविभाजन २४ । (३) पूँजी २५, उत्पादन में पूजी महत्त्व २५, बचत २७, लेन-देन का कार्य करने वाली संस्थायें २९ ।। (४) प्रबन्ध ३१, उत्पादन में प्रबन्ध का महत्त्व ३१, प्रबन्ध प्रस्तुतकर्ता ३१ ।। अध्याय ३ कृषि और पशुपालन ३४-७३ उत्पादन का महत्त्व ३४, उत्पादक व्यवसाय ३४, (१) कृषि ३८, कृषि-भूमि ३९, कृषि-श्रम ४१, कृषि उपकरण ४३, भूर्कषण ४५, सिंचाई ४७, खेतों की सुरक्षा ५०, उपज की कटाई ५१, धान्य-भण्डारण ५२, प्रमुख उपज ५३, प्राकृतिकविपदाये ५६, आर्थिक जीवन में ग्रामों का महत्त्व एवं व्यवस्था ५७, कृषि के उन्नयन में राज्य का योगदान ५८, उपवन-उद्यानवाटिका ५९ । (२) पशुपालन ६२, कुक्कुटपालन ७१, मत्स्य पालन ७१।
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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