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________________ ( ९) ग्रन्थालयाधिकारी डॉ० मंगल प्रकाश मेहता की भी आभारी हूँ, जिनसे मुझे निरन्तर सहयोग मिलता रहा। इसी प्रकार विद्याश्रम के शोधाधिकारी डॉ० अरुण प्रताप सिंह और डॉ० रविशंकर मिश्र भी मुझे सदैव सहयोग देते रहे। प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के पुस्तकालयाध्यक्ष से भी पुस्तकों की सहायता प्राप्त हुई है, जिनके लिये मैं उनकी आभारी हूँ। इसी प्रकार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के केन्द्रीय पुस्तकालय, वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली के पुस्तकालय, जैन श्वेताम्बर पुस्तकालय, दिल्ली के पुस्तकालय तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूस्तकालय के प्रति भी आभार प्रकट करती हूँ जहाँ से मुझे पुस्तकीय सहायता मिली है। ___इस अवसर पर अपने परिजनों का सहयोग भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है । सर्वप्रथम तो मैं अपने पिता श्रीवजवन्तराय जी की ऋणी हूँ, जिन्होने मुझे सदैव ही अध्ययन की प्रेरणा दी है। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि मैं जैन आगम साहित्य के क्षेत्र में शोध कार्य करूं। यह उनकी प्रेरणा और आशीर्वाद का ही प्रतिफल है कि मैं इस कार्य को सफलता पूर्वक सम्पन्न कर सकी। मेरे पति श्री आर० के० जैन से स्नेह और सहयोग मिलता रहा है। यह केवल उनके प्रोत्साहन का ही परिणाम है कि इस ग्रंथ को लिखने का साहस कर सकी। मेरे दोनों पुत्र सवित और गौरव भी मेरे इस अध्ययन के सहयोगी बने। इस ज्ञान यज्ञ की पूर्णाहुति का श्रेय उन्हें ही है । मेरे श्वसुर श्री प्यारेलालजी जो पंजाब जैन समाज के कर्मठ कार्यकर्ता रहे, आज इसे देखने को हमारे बीच नहीं हैं। यह ग्रन्थ मेरी श्रद्धाञ्जलि के रूप में उन्हें समर्पित है। -कमल जैन
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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