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________________ भारत में महिला श्रमिक : दशा एवं दिशा / 419 आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हो। इसी प्रकार अनुच्छेद 42 काम को न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता के लिए उपबन्ध करने का निर्देश देता है। अनुच्छेद 43 स्त्री एवं पुरूष कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि की व्यवस्था करने का निर्देश देता है, क्योंकि राष्ट्र के आर्थिक विकास में भागीदार स्त्री-पुरूष श्रमिकों की गरिमा एवं उनके व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए उन्हें निर्वाह योग्य मजदूरी दिया जाना तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना अपरिहार्य है। अभी हाल ही में जोड़े गए अनुच्छेद 43 क के अनुसार उद्योगों के प्रबन्ध में स्त्री-पुरूष कर्मकारों की भागीदारी सुनिश्चित करने का राज्य को निर्देश हैं। नीति-निर्देशक तत्वों के अनुपालन में संघ तथा राज्य सरकारों ने विभिन्न अधिनियम पारित किए हैं, जिनमें स्त्री-पुरूष कर्मियों को कार्यदशा सुधारने का प्रयास किया गया है। इनमें प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम; मजदूरी संदाय अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, बोनस संदाय अधिनियम तथा कारखाना अधिनियम आदि प्रमुख हैं। कुछ अधिनियम स्त्री-पुरूष कर्मकारों के मध्य बराबरी लाने के इरादे से पारित किए गए जिनमे समान पारिश्रमिक अधिनियम प्रमुख है। प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम केवल स्त्री कर्मकारों की विशिट लैंगिक स्थिति के कारण उपबन्ध बनाने के लिए पारित किया गया है। स्त्री को शारीरिक संरचना और मातृत्व-कृत्यों का पालन जीवन निर्वाह के लिए उसे अलाभ की स्थिति में रखते हैं तथा उसकी शारीरिक भलाई, लोकहित और सावधानी का विषय हो जाती है, ताकि उसके परिवार की क्षमता और उत्साह का परिरक्षण किया जा सके। इस कारण स्त्रियों के पक्ष में विशेष उपबन्ध आवश्यक है। विधायिका ने इन वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर स्त्री कर्मकारों के कार्य के घण्टे, स्वास्थ्य व सुरक्षा हेतु उपबन्ध तथा शिशु-गृह आदि की व्यवस्था से सम्बन्धित विधि पारित की है। अनेक कारखानों में ऐसी स्त्रियाँ नियोजित होती है जिनके गोद खेलते बच्चे होते हैं। स्त्रियाँ ऐसे बच्चों को अपनी साथ लाती हैं जिन्हें शिशु गृहों के अभाव में इधर-उधर खेलने के लिए छोड़ दिया जाता है। मिलों में ये बच्चे आवाज की खडखडाहट और चलती मशीनों के खतरे और धूल से भरे हुए वातावरण के शिकार बनते हैं। अतः धारा 48 हर ऐसे कारखाने में, जिसमें साधारणतया 30 या इससे अधिक स्त्रियाँ नियोजित हैं छः वर्ष से कम आयु के बच्चों के उपयोग के लिए उपयुक्त कमरा या कमरे उपलब्ध कराने का प्रावधान करता है जिसे सार्वजनिक शिशु-गृह में तब्दील किया जा सके। ऐसे शिशु-गृहों में समुचित स्थान प्रदान किया जाएगा, इन्हें पर्याप्त रूप से प्रकाश और हवा से युक्त रखा जाएगा तथा ऐसे बाल-गृह, बालकों एवं शिशुओं की देख-रेख के कार्य में प्रशिक्षित, महिला के प्रभार के अन्तर्गत रखा जाएगा। इस सम्बन्ध में राज्य सरकार को यह भी शक्ति दी गई है कि वह नियमावली बनाकर ऐसे शिशु-गृहों के लिए स्थान नियत करने और उन गृहों के निर्माण, उनमें उपलब्ध स्थान, फर्नीचर और उचित साज-सज्जा के मानक स्थिर करे। ऐसे कारखानों में महिला कर्मकारों के शिशुओं की देख-रेख के लिए अन्य अतिरिक्त सुविधाएं प्रदान करने, धुलाई के लिए स्थान एवं पानी आदि की समुचित सुविधाएँ और स्त्रियों के वस्त्र बदलने के लिए उचित एवं सुरक्षित व्यवस्था करने, ऐसे शिशुओं के लिए निःशुल्क दूध या नाश्ता या दोनों के लिए व्यवस्था कारखाने में ही करने तथा आवश्यक अन्तरालों पर ऐसे बच्चों को माताओं को उन्हें अपना दूध पिलाने की सुविधा देने की व्यवस्था करने का आदेशात्मक उपबन्ध करता है। इसी अधिनियम (अध्याय 6) में वयस्कों के काम के घण्टों के संबंध में विशद् विवेचन है कि इनसे अधिकतम कितने घण्टे काम लिया जा सकता है तथा ओवर टाइम लेने पर मजदूरी की दर क्या होगी? श्रम विषयक रॉयल कमीशन ने अपने प्रतिवेदन में यह संकेत किया था कि स्त्रियों के लिए पुरूषों की अपेक्षा काम के घण्टों की अधिकतम सीमा कम निर्धारित करने का प्रमुख आधार यह है कि स्त्रियों को घरेलू काम भी करने पड़ते हैं। अतः
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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